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मनुष्य केवल हाड़-चाम का पुतला नहीं है । उसमें मस्तिष्क होने से उसके पास स्मृति है, बुद्धि है और सोचने-विचारने की शक्ति है । इतना ही नहीं, वह सामाजिक प्राणी है । उसका उद्विकास अपने में अति रोचक विषय है । वह पशु जगत् का मुकुटमणि है; किंतु वह सभ्य या सुसंस्कृत होने से धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष-इन चारों पुरुषार्थों का स्वामी है ।
विज्ञान के कारण उसके पास भौतिक उन्नति के साधन उपलब्ध हैं । मनोविज्ञान के माध्यम से विज्ञानियों को मनुष्य के भीतर झाँकने का अवसर मिला है । वह निद्रा, स्वप्न, प्रेम आदि का गहराई से अध्ययन कर चुका है । शरीरशास्त्र ने हमारे समक्ष अस्थि, त्वचा, बाल, दाँत, कान, नाक, रक्त आदि के विषय में रोचक तथ्य प्रस्तुत किए हैं । आनुवंशिकता, वृद्धावस्था एवं मृत्यु जैसे विषयों के रोचक तथ्य पहली बार प्रस्तुत पुस्तक ' मानव की सेचक बातें ' में लिपिबद्ध किए जा रहे हैं, जो सभी आयु के पाठकों को सूचनाप्रद लगेंगे ।
विश्वास है, पुस्तक हमारे पाठकों को पसंद आएगी ।
जन्म : 5 जून 1967 ।
शिक्षा : एम.एस-सी. (कृषि रसायन) डी.फिल. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय से) । शोध के साथ-साथ विज्ञान लेखन में भी रुचि । विभिन्न पुस्तकों-‘वायु प्रदूषण’, ‘पृथ्वी की रोचक बातें’, ‘एयर एंड एटमॉस्फरिक पोलूटेंट्स' के सह- लेखक । इसके अतिरिक्त स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती के विशेष अंग्रेजी निबंधों का ' आर्ष विज्ञान ' के नाम से अनुवाद किया है । एक अन्य पुस्तक ' नीम एक कल्पवृक्ष ' बाल विज्ञान सीरीज के अंतर्गत प्रकाशनाधीन । विज्ञान लेखन के क्षेत्र में उत्कृष्ट लेखन हेतु विज्ञान परिषद् प्रयाग द्वारा ' डॉ. गोरख प्रसाद विज्ञान पुरस्कार' से सम्मानित ।
डाँ. शिवगोपाल मिश्र ( जन्म सन् 1931) विज्ञान जगत् के जाने- माने लेखक हैं । आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम. एस. -सी. (कृषि रसायन) तथा डी. फिल्. की उपाधिया प्राप्त करने के बाद इसी विश्वविद्यालय में 1956 से लेकर 1991 तक क्रमश : लेक्चरर, रीडर प्रोफेसर और निदेशक (शीलाधर मृदा विज्ञान -शोध संस्थान) पदों पर अध्यापन और शोधकार्य का निर्देशन किया । आपने सूक्ष्म मात्रिक तत्त्व, फास्फेट, जैव उर्वरक पादप रसायन अम्लीय मृदाएँ, भारतीय कृषि का विकास, मिट्टी का मोल जीवनोपयोगी मात्रिक तत्त्व नामक पुस्तकों का प्रणयन किया है, जिनमें से कई पुस्तकें पुरस्कृत भी हो चुकी हैं । आपने मृदा प्रदूषण, वायु प्रदूषण तथा जल प्रदूषण के विषय में अनेकानेक शोधपरक निबंध प्रकाशित किए हैं । आप प्रारंभ से ही हिंदी में रुचि होने के कारण 1952 से विज्ञान परिषद्, प्रयाग से संबद्ध रहे हैं । आपने कई वर्षों तक मासिक पत्रिका ' विज्ञान ' का संपादन किया है । आप 1958 से पत्रिका' के प्रबंध संपादक है । हिंदी की वैज्ञानिक पत्रिकाओं में आपके कई सौ लेख प्रकाशित हो चुके हैं । आपने ' भारत की संपदा ' का संपादन तथा ' रसायन विज्ञान कोश ' का लेखन किया है ।ही ' विज्ञान परिषद् अनुसंधान