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सदियों से हमारे देश में धर्मगुरुओं एवं आध्यात्मिक शक्तियों ने राजा-महाराजाओं एवं शासन पद्धति को सही दिशा में ले जाने के लिए मार्गदर्शन किया है। राजनीति में धार्मिक आधार पर भावनाओं को भड़काकर लाभ उठाना किसी भी रूप में ठीक नहीं है, किंतु शासन-प्रशासन में अपनी धर्म-संस्कृति की श्रेष्ठ परंपराओं से प्रेरणा लेकर कार्य करने को किसी भी रूप में अनुचित नहीं कहा जा सकता है।
किसी भी पार्टी या संगठन में जब तक समग्र टीम का विकास नहीं होता है, तब तक उसे सफलता नहीं मिल सकती है। भारत के राजनैतिक दलों की यह जिम्मेदारी है कि वक्त के मुताबिक अपने को बदलें। कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि यह वक्त देश को व्यक्तिवाद एवं परिवारवाद से निकालकर राष्ट्रवाद की तरफ ले जाने का है।
अपने राष्ट्र एवं समाज के बारे में युवा जिस प्रकार सोचेगा, वैसा ही देश का भविष्य होगा। आज आवश्यकता इस बात की है कि युवाओं को अपनी गौरवमयी सभ्यता एवं संस्कृति से परिचित कराया जाए। यदि युवा वर्ग ठीक से अपनी सभ्यता एवं संस्कृति को जान एवं समझ गया तो वह पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति की तरफ आकर्षित नहीं होगा।
—इसी पुस्तक से
विचारक एवं मनीषी इंजीनियर अरुण कुमार जैन के प्रभावोत्पादक विचारों के कुछ सूत्र इस पुस्तक में संकलित हैं, जो राष्ट्रीय सरोकारों के प्रति सजग होने के लिए सचेत करते हैं। अत्यंत पठनीय एवं रोचक पुस्तक।
इंजीनियर अरुण कुमार जैन का जन्म 17 अक्तूबर, 1951 को दिल्ली में हुआ। बाल्यकाल से ही उन्हें अपने समाजधर्मी पिता स्व. श्री प्रकाशचंद जैन से संस्कार और विचार मिले, जिनसे राष्ट्रवाद और राष्ट्रहित के भाव जाग्रत् हुए। दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से इंजीनियर अरुणजी अपने आस-पास के परिवेश और परिस्थितियों का बहुत गइराई और सूक्ष्मता से अध्ययन कर अपनी अंतर्दृष्टि विकसित करते हैं और आत्मविकास की ओर प्रवृत्त होते हैं। सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक क्षेत्रों में निस्स्वार्थ सक्रिय भूमिका के लिए उनकी विशिष्ट पहचान, सम्मान और आदर है। उनकी कार्ययोजना में दूरदृष्टि है और सफल कार्यान्यवन की व्यावहारिक कार्यपद्धति भी। उनके स्पष्ट विचारों और सहज प्रवाहमय भाषा में लिखे लेख निरंतर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं।
आजकल आप ‘रामजन्म भूमि न्यास’ के ट्रस्टी हैं और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय कार्यालय में कार्यालय मंत्री के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं।