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मनोहर श्याम जोशी ने अनेक फिल्मों के लिए पटकथा और संवाद-लेखन का काम किया। यहाँ उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इसका एक कारण शायद यह भी है कि सिनेमा में पूरी तरह निर्देशक ही माध्यम होता है और उसमें लेखक की कहानी को निर्देशक अपने किसी खास कोण से सिनेमा में ढालता है और इस क्रम में लेखक का संदेश कई बार कहीं पीछे छूट जाता है। ‘हे राम’, ‘भ्रष्टाचार’, ‘पापा कहते हैं’ उनकी लिखी कुछ ऐसी फिल्में हैं, जिनकी चर्चा की जा सकती है।
मनोहर श्याम जोशी का व्यक्तित्व बहुआयामी कहा जा सकता है। उनके इस बहुआयामी व्यक्तित्व का केंद्रीय आयाम लेखन था। उनको एक ऐसे लेखक के रूप में याद किया जाएगा, जो अनेक माध्यमों में लेखन की कसौटी पर खरे उतरे। यही कारण है कि हिंदी पत्रकारों-लेखकों में उनका व्यक्तित्व सबसे अलग दिखाई देता है। वे एक ऐसे पत्रकार थे, जिनका पत्रकारिता और साहित्य से समान नाता रहा।
हमें विश्वास है कि विश्वविद्यालय द्वारा मूर्धन्य पत्रकार-संपादकों की इस मोनोग्राफ श्रृंखला से पत्रकार जगत् और पत्रकारिता के विद्यार्थी लाभान्वित होंगे और विरासत की इस समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रवृत्त होंगे।
जन्म : 3 नवंबर 1970, सीतामढ़ी, बिहार।
शिक्षा : पी-एच.डी., एम.फिल. (उदयप्रकाश की कहानियों में राजनीतिक-सामाजिक परिप्रेक्ष्य)।
प्रकाशन : ‘जानकी पुल’ और ‘बोलेरो क्लास’ (कहानी संग्रह), ‘स्वच्छंद’ (संपादन), टेलीविजन लेखन, एंकर रिपोर्टर, मार्केस की कहानी(गाब्रियल गार्सिया मार्केस के जीवन और लेखन पर एकाग्र। विक्रम चंद के उपन्यास का हिंदी अनुवाद ‘श्रीनगर का षड्यंत्र’, प्रसिद्ध एन. फ्रैंक की डायरी का हिंदी अनुवाद, ‘I too had a love story’ का हिंदी अनुवाद, ‘एक प्रेम कहानी मेरी भी’। ‘बहुवचन’ पत्रिका का संपादन।
पुरस्कार-सम्मान : ‘सहारा समय कथा सम्मान’, ‘प्रेमचंद कथा सम्मान’।
संप्रति : दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन सांध्य महाविद्यालय में अध्यापन।