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Manu Sharma ki Lokpriya Kahaniyan   

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Author Manu Sharma
Features
  • ISBN : 9789351869658
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Manu Sharma
  • 9789351869658
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2017
  • 192
  • Hard Cover

Description

मनु शर्मा की कहानियाँ हमारे दौर के समाज का आईना हैं। हमारे रोजमर्रा के जीवन का प्रतिबिंब हैं। इनमें कुछ भी बनावटी नहीं है। न जबरन किसी ‘वाद’ की तरफदारी, न बेवजह की झंडाबरदारी। मनु शर्मा की रुचि मनुष्य में रही है। किसी ‘वाद’ में नहीं। ‘वाद’ या ‘इज्म’ मनुष्य से बड़े नहीं होते। कबीर या रसखान का कौन सा वाद था? लोकहित के पाले में खड़ा हो लोकचेतना को व्यक्त करना ही इस रचनाकार का धर्म है। उनकी कहानियों में जीवन की समस्याएँ हैं। बदलता परिवेश है। आधुनिकता की दौड़ में घुटती मान्यताएँ हैं। ‘जो जहाँ है जैसा है’ की शक्ल में। लेकिन सबकुछ सहज भाषा में।
मनु शर्मा के लेखन की सबसे बड़ी विशेषता जीवन और समाज पर उनकी पैनी दृष्टि है। यह दृष्टि जहाँ पड़ती है, चरित्र, परिस्थितियों और माहौल का एक हूबहू एक्स-रे सा खिंच जाता है। उनकी कहानियाँ जीवन के कटु यथार्थ की जमीन पर रोपी हुई हैं। इनमें न दुःखांत का आग्रह है, न सुखांत का दुराग्रह। कहानी खुद तय करती है कि उसकी शक्ल क्या होगी। इन कहानियों को पढ़ते हुए लगता है कि मानो पाठक एक यात्रा पर निकला हो और उसके अनुभव जीवन के तमाम द्वीपों से गुजरते हुए समाज और काल में फैल गए हों। पाठक इसका गवाह बनता है। इस वृत्तांत का सम्मोहन इतना कि पाठक को पहले शब्द से लेकर अंतिम विराम तक एक अजीब किस्म के चुंबकत्व का बोध होता है। यही मनु शर्मा की कहानियों का यथार्थ है। उन्हें आलोचक भले न मिले हों, पर पाठक भरपूर मिले। 
आलोचना के क्षेत्र में पराजित एक लेखक की ये अपराजित कहानियाँ हैं।

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अनुक्रम

आमुख — 5

1. लँगड़ा हाजी — 15

2. महात्मा — 44

3. गुमशुदा — 66

4. स्पर्श सुख — 73

5. रोशनी कहाँ गई — 80

6. दीक्षा — 87

7. एक माँ मरी है — 99

8. अश्रव्य चीखें — 126

9. बिल्ली का न्याय — 138

10. अगाली — 149

11. काशी के हिप्पी — 156

12. सोर्स जो काम न आया — 162

13. ग.बो. 168

14. मुंशी बरकतलाल — 173

15. सर्कस सुंदरी — 183

16. गुलामी एक प्रेमिका की — 188

The Author

Manu Sharma

मनु शर्मा ने साहित्य की हर विधा में लिखा है। उनके समृद्ध रचना-संसार में आठ खंडों में प्रकाशित ‘कृष्ण की आत्मकथा’ भारतीय भाषाओं का विशालतम उपन्यास है। ललित निबंधों में वे अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं तो उनकी कविताएँ अपने समय का दस्तावेज हैं। जन्म : सन् 1928 की शरत् पूर्णिमा को अकबरपुर, फैजाबाद में। शिक्षा : काशी विश्‍वविद्यालय, वाराणसी।
किताबें : ‘तीन प्रश्‍न’, ‘राणा साँगा’, ‘छत्रपति’, ‘एकलिंग का दीवान’ ऐतिहासिक उपन्यास; ‘मरीचिका’, ‘विवशता’, ‘लक्ष्मणरेखा’, ‘गांधी लौटे’ सामाजिक उपन्यास तथा ‘द्रौपदी की आत्मकथा’, ‘द्रोण की आत्मकथा’, ‘कर्ण की आत्मकथा’, ‘कृष्ण की आत्मकथा’, ‘गांधारी की आत्मकथा’ और ‘अभिशप्‍त कथा’ पौराणिक उपन्यास हैं। ‘पोस्टर उखड़ गया’, ‘मुंशी नवनीतलाल’, ‘महात्मा’, ‘दीक्षा’ कहानी-संग्रह हैं। ‘खूँटी पर टँगा वसंत’ कविता-संग्रह है, ‘उस पार का सूरज’ निबंध-संग्रह है।
सम्मान और अलंकरण : गोरखपुर विश्‍व-विद्यालय से डी.लिट. की मानद उपाधि। उ.प्र. हिंदी संस्थान का ‘लोहिया साहित्य सम्मान’, केंद्रीय हिंदी संस्थान का ‘सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार’, उ.प्र. सरकार का सर्वोच्च सम्मान ‘यश भारती’ एवं साहित्य के लिए म.प्र. सरकार का सर्वोच्च ‘मैथिलीशरण गुप्‍त सम्मान’।
संपर्क : 382, बड़ी पियरी, वाराणसी।

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