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"""माता बाघिन"" संभवतः बाघों को केंद्र में रखकर पहली औपन्यासिक कृति है। इस पुस्तक की कथावस्तु एक युवा बाघिन पर केंद्रित है, जो 6 साल पहले पन्ना टाइगर रिजर्व से स्वभावतः घूमते हुए चित्रकूट एवं मझगवां के ऐतिहासिक वनखंड में आ गई और यहाँ की आबो-हवा उसे इतना भा गई कि वह यहीं की होकर रह गई । माता बाघिन की कथावस्तु के साथ विश्वप्रसिद्ध व्हाइट टाइगर (सफेद बाघ) पर भी पहली बार इतनी तथ्यात्मक और रोचक जानकारी दी जई है। दुनिया में अपनी तरह के अकेले व्हाइट टाइगर सफारी, मुकुंदपुर से संबंधित वास्तविक जानकारी इस पुस्तक में समायोजित है।
इस पुस्तक में जहाँ पूरी तथ्यात्मक और प्रामाणिक जानकारियाँ तारीख-दर-तारीख दी गयी हैं, वहीं बड़ी बात यह है कि 50-60 वास्तविक फोटोग्राफ इतने सालों में बड़ी मेहनत के बाद जंगल से खींचे गए हैं। इनमें से बाघों, अन्य वन्यजीवों तथा जंगल के बीच आबाद ऐतिहासिक आश्रमों के छायाचित्र भी हैं। यह पुस्तक मनुष्य, संतों और वनवासियों के साथ बाघों के संबंधों को नए तरीके से परिभाषित करने में सक्षम है।"