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‘माता भूमि’ राष्ट्रीय स्वतंत्रता के संक्रमण काल में लिखे हुए आचार्य वासुदेवशरण अग्रवाल के कुछ लेखों का संग्रह है। इनमें राष्ट्र के उभरते हुए नए स्वरूप के प्रति तथ्यात्मक भावनाएँ हैं एवं उसके जीवन के जो बहुविध पहलू हैं, उनके प्रति ध्यान दिलाया गया है। भूमि, जन और संस्कृति—इन तीनों के मेल तथा विकास से राष्ट्र का स्वरूप बनता है। इन तीनों क्षेत्रों में भूतकाल का लंबा इतिहास भारत राष्ट्र के पीछे है। वह सब हमारे वर्तमान जीवन की रसायन-खाद बनकर उसे रस से सींच रहा है और भावी विकास के लिए पल्लवित कर रहा है। मानवीय विकास की यही सत्य विधि है। अतएव इन लेखों में बारंबार जीवन के प्राचीन सूत्रों की ओर ध्यान दिलाते हुए यह समझाने का प्रयत्न किया गया है कि उनसे हमारा राष्ट्र और जीवन किस प्रकार अधिक तेजस्वी, स्वावलंबी और अपने क्षेत्र में एवं विश्व के साथ समवाय तथा संप्रीति-संपन्न बन सकता है।
राष्ट्रभाव जाग्रत् करने वाले भावपूर्ण लेखों का पठनीय और संग्रहणीय संकलन।
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अनुक्रम
भूमिका—Pgs.७
१. माता भूमि—Pgs.१३
२. मंत्रों की मधुमती भूमिका में पृथिवी—Pgs.२२
३. भारतीय वन-श्री का पुष्पहास—Pgs.२८
४. क्षीर-गंगा—Pgs.३४
५. हिमालय और गंगा—Pgs.३९
६. हिंदी की उदार वाणी—Pgs.४३
७. शब्दों का देश—Pgs.५१
८. तुलसीदास—Pgs.५८
९. सूरदास—Pgs.६४
१०. भारतीय विचारों के मेघजल—Pgs.६८
११. भारतीय ललित कला की परंपराएँ—Pgs.७४
१२. भारतीय कला का स्वर्णयुग—Pgs.७९
१३. जहाँ नाचते-गाते लोग—Pgs.८३
१४. राष्ट्रीय उपवन कृष्ण गिरि—Pgs.८६
१५. मुगल चित्रकला—Pgs.९२
१६. राजस्थानी चित्रशैली—Pgs.९७
१७. हिमाचल-चित्रकला—Pgs.१००
१८. युगारंभ—Pgs.१०५
१९. महते जानराज्याय—Pgs.१०७
२०. संविधान की परंपरा—Pgs.११०
२१. राष्ट्रीय उन्नति का छैरिया१ चक्र—Pgs.११९
२२. जनजीवन के दो सूत्र—Pgs.१२६
२३. उपदेशेन वर्तामि—Pgs.१३०
२४. पाणिवाद—Pgs.१३३
२५. व्यास का मानवीय दृष्टिकोण—Pgs.१३८
२६. चरित्र का मानदंड—Pgs.१४२
२७. भारत का विश्व-मानस—Pgs.१४९
२८. प्रियदर्शी अशोक—Pgs.१५२
२९. अशोक का नया उत्थान धर्म—Pgs.१५७
३०. समवाय एव साधु—Pgs.१६३
३१. एशिया की आँख—Pgs.१६६
३२. एशिया और भारत—Pgs.१६९
३३. प्रज्ञा-वृक्ष—Pgs.१७८
३४. राष्ट्र का धर्म-शरीर —Pgs.१८१
३५. चमकीला सत्य—Pgs.१८५
३६. मैं स्वयं हवि हूँ—Pgs.१८९
३७. दावानल-आचमन—Pgs.१९२
३८. कर्तव्य कर्म की हुंडी—Pgs.१९५
३९. गांधी पुण्य-स्तंभ—Pgs.२०१
४०. गांधी राष्ट्रीय बुद्धि समवाय—Pgs.२११
४१. चक्रध्वज—Pgs.२१८
४२. राष्ट्रीय महामुद्रा—Pgs.२२१
परिशिष्ट—Pgs.२२८
डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल
जन्म : सन् 1904।
शिक्षा : सन् 1929 में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए.; तदनंतर सन् 1940 तक मथुरा के पुरातत्त्व संग्रहालय के अध्यक्ष पद पर रहे। सन् 1941 में पी-एच.डी. तथा सन् 1946 में डी.लिट्.। सन् 1946 से 1951 तक सेंट्रल एशियन एक्टिविटीज म्यूजियम के सुपरिंटेंडेंट और भारतीय पुरातत्त्व विभाग के अध्यक्ष पद का कार्य; सन् 1951 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ इंडोलॉजी (भारती महाविद्यालय) में प्रोफेसर नियुक्त हुए। वे भारतीय मुद्रा परिषद् नागपुर, भारतीय संग्रहालय परिषद् पटना और ऑल इंडिया ओरिएंटल कांग्रेस, फाइन आर्ट सेक्शन बंबई आदि संस्थाओं के सभापति
भी रहे।
रचनाएँ : उनके द्वारा लिखी और संपादित कुछ प्रमुख पुस्तकें हैं—‘उरु-ज्योतिः’, ‘कला और संस्कृति’, ‘कल्पवृक्ष’, ‘कादंबरी’, ‘मलिक मुहम्मद जायसी : पद्मावत’, ‘पाणिनिकालीन भारतवर्ष’, ‘पृथिवी-पुत्र’, ‘पोद्दार अभिनंदन ग्रंथ’, ‘भारत की मौलिक एकता’, ‘भारत सावित्री’, ‘माता भूमि’, ‘हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन’, राधाकुमुद मुखर्जीकृत ‘हिंदू सभ्यता’ का अनुवाद। डॉ. मोती चन्द्र के साथ मिलकर ‘शृंगारहाट’ का संपादन किया; कालिदास के ‘मेघदूत’ एवं बाणभट्ट के ‘हर्षचरित’ की नवीन पीठिका प्रस्तुत की।
स्मृतिशेष : 27 जुलाई, 1966।