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राष्ट्र के रूप में भारत की पहचान का मूल अधिष्ठान सांस्कृतिक है। विगत कुछ शताब्दियों से भारत की आन्तरिक क्षमता को कम करने, उसकी एकता-अखण्डता को छिन्न-भिन्न करने के उद्देश्य से हिन्दू मत पर लगातार प्रहार किये जा रहे हैं।
राष्ट्र के सांस्कृतिक विघटन तथा भौगोलिक अखण्डता को क्षति पहुँचाने के लिए मतान्तरण को सशक्त माध्यम बनाया गया है। मतान्तरण के माध्यम से ईसाइयत और इस्लाम के अनुयायियों की संख्या में वृद्धि की जा रही है, इससे देश में जनसंख्या-असन्तुलन पैदा हो गया है। सीमावर्ती प्रान्तों में यह असन्तुलन इतना बढ़ गया है कि वहाँ गम्भीर स्थिति पैदा हो गयी है।
हिन्दू मत पर आक्रमण करनेवालों ने हमारी दुर्बलताओं का भरपूर लाभ उठाया है। प्रस्तुत पुस्तक में मतान्तरण और उससे जुड़े सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, वैधानिक एवं व्यावहारिक पक्षों पर विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों ने अपने सारगर्भित विचार एवं अनुभव व्यक्त किए हैं।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि हिन्दू मत के समक्ष आन्तरिक व बाह्य, दोनों प्रकार की चुनौतियाँ हैं, जिनसे निपटने के लिए दोनों स्तरों पर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
आशा है, सुधी जन पुस्तक का अध्ययन-मनन कर राष्ट्र के समक्ष विकराल रूप में खड़े मतान्तरण के खतरे की भयावहता को समझेंगे और इन चुनौतियों से निपटने के लिए किये जा रहे प्रयासों को बल देंगे। राष्ट्राभिमानी तथा चिन्तनशील प्रबुद्ध जनों के लिए एक उपयोगी—पुस्तक ‘मतान्तरण’।