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‘माटी बन गई चंदन’ भारत के उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत की संक्षिप्त जीवन गाथा है। शेखावत का जन्म लगभग चौरासी वर्ष पूर्व तत्कालीन जयपुर रियासत के एक अनाम से गाँव खाचरियावास में हुआ था। गाँव की पाठशाला में अक्षर-ज्ञान प्राप्त किया। हाई स्कूल की शिक्षा गाँव से तीस किलोमीटर दूर जोबनेर से प्राप्त की, जहाँ पढ़ने के लिए पैदल जाना पड़ता था। हाई स्कूल करने के पश्चात् जयपुर के महाराजा कॉलेज में दाखिला लिया ही था कि पिता का देहांत हो गया और परिवार के आठ प्राणियों के भरण-पोषण का भार किशोर कंधों पर आ पड़ा, फलस्वरूप हल हाथ में उठाना पड़ा। बाद में पुलिस की नौकरी भी की; पर उसमें मन नहीं रमा और त्यागपत्र देकर वापस खेती करने लगे। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् लोकतंत्र की स्थापना ने आम नागरिक के लिए उन्नति के द्वार खोल दिए। राजस्थान में वर्ष 1952 में विधानसभा की स्थापना हुई तो शेखावत ने भी भाग्य आजमाया और विधायक बन गए। फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा तथा सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ते हुए विपक्ष के नेता, मुख्यमंत्री और उपराष्ट्रपति पद तक पहुँच गए। ‘माटी बन गई चंदन’ में श्री शेखावत के चौरासी वर्षों के संघर्षशील व जुझारू जीवन, उनके राजनीतिक चातुर्य और प्रशासनिक कौशल, मानवीय संवेदनाओं, शत्रु को भी मित्र बनाने की कला आदि का दर्शन कराने का प्रयास किया गया है। ‘माटी बन गई चंदन’ भारतीय लोकतंत्र की महानता की भी गाथा है, जिसने एक साधारण किसान परिवार में जन्म लेनेवाले व्यक्ति का सत्ता के शिखर तक पहुँचना संभव बनाया।
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अनुक्रम
1. प्रारंभिक काल — Pgs. 11
2. पुलिस में नौकरी — Pgs. 16
3. पहला चुनाव — Pgs. 20
4. चुनाव-यात्रा — Pgs. 25
5. सिद्धांतों की राजनीति — Pgs. 28
6. मुसीबत अकेली नहीं आती — Pgs. 35
7. आपातकाल — Pgs. 38
8. सती-प्रथा का विरोध — Pgs. 48
9. मुख्यमंत्रित्व काल — Pgs. 56
10. मंदिर-मसजिद विवाद — Pgs. 88
11. अंत्योदय — Pgs. 99
12. गरीबी उन्मूलन की अभिनव योजनाएँ — Pgs. 107
13. अल्पसंख्यकों का उत्थान — Pgs. 114
14. मिर्धा अपहरण कांड — Pgs. 120
15. उपराष्ट्रपति — Pgs. 129
16. माथे का चंदन — Pgs. 137
17. राज्यसभा का संचालन — Pgs. 149
18. विद्रोही मन — Pgs. 160
19. सहृदय एवं संवेदनशील — Pgs. 165
20. सार्वजनिक जीवन में शुचिता — Pgs. 179
21. कुछ रोचक प्रसंग — Pgs. 187
मिलाप चंद डंडिया राजस्थान के वरिष्ठतम पत्रकारों में हैं। पत्रकार के रूप में आधी शताब्दी पूर्व प्रारंभ हुई डंडिया की यात्रा जयपुर के दैनिक ‘जयभूमि’ और दैनिक ‘लोकवाणी’ के प्रशिक्षु पत्रकार के रूप में शुरू हुई। स्वयं का ‘समृद्धि’ नामक साप्ताहिक तथा राजस्थान का पहला वार्षिक संदर्भ ग्रंथ ‘राजस्थान इयर बुक ऐंड हूज हू’ प्रकाशित किया। देश की ख्याति- प्राप्त पत्र-पत्रिकाओं यथा—‘दि इकोनॉमिक टाइम्स’, ‘द बिजनेस स्टैंडर्ड’, ‘द टेलीग्राफ’, ‘द ट्रिब्यून’, ‘दि एशियन एज’, ‘रविवार’, ‘संडे’, ‘इतवारी पत्रिका’ के संवाददाता के रूप में कार्य किया और खोजपूर्ण पत्रकार के रूप में प्रतिष्ठा अर्जित की। राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, मुख्य सचिव, मंत्रिगण, विधायक जैसे उच्च पदस्थ लोग डंडिया की खोजपूर्ण रिपोर्टों के शिकार बने हैं। खोजपूर्ण रिपोर्टों पर आधारित इनकी पुस्तक ‘मुखौटों के पीछे’ राजस्थान की आधी शताब्दी के राजनीतिक व सामाजिक जीवन की विद्रूपताओं का एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। श्री डंडिया ने एक पत्रकार के रूप में राज्य के सभी बड़े राजनेताओं को निकट से देखा और पहचाना है। भैरोंसिंह शेखावत से भी उनका परिचय उस दिन से है, जब सन् 1952 में शेखावत विधायक बनकर जयपुर आए थे। ‘माटी बन गई चंदन’ के रूप में भैरोंसिंह शेखावत की यह जीवन-गाथा उनके संबंध में एक प्रामाणिक दस्तावेज है।