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अहिल्याबाई होलकर एक बेटे, एक परिवार की नहीं, समस्त प्राणिमात्र की माँ बन गईं और प्रजा ने उन्हें प्रातः स्मरणीय, पुण्यश्लोका, देवी, लोकमाता मान अपनी आत्मा में स्थान दे रखा है।
प्रस्तुत नाटक ‘मातोश्री’ उसी चरित्र की नाटकीय प्रस्तुति है। लेखिका ने इसे देवी की प्रेरणा से लिपिबद्ध किया है। नाटक पठनीयता के स्थान पर प्रभावी अभिनयता के कारण अधिक गहरा और लंबे समय तक प्रभाव कायम रखता है। सुमित्राजी लेखिका नहीं हैं, लेकिन देवी के प्रति श्रद्धा एवं पूजाभाव ने उनसे नाटक लिखवा सिद्धहस्त नाटककार बना दिया।
नाटक ‘मातोश्री’ देवी अहिल्याबाई के मातृत्व के श्रेष्ठ गुणों का परिचायक है। नाटक न केवल पठनीय है, वरन् मंचनीय भी है, क्योंकि इसमें नाटक एवं मंचन की दृष्टि से सारे तत्त्व मौजूद हैं।
स्वर, भाषा, संवाद पात्रानुकूल हैं। लेखिका ने नाटक के जरिए मातोश्री अहिल्याबाई की पारिवारिक त्रासद जिंदगी को अद्वितीय अभिव्यक्ति दी है।
एक सतत प्रेरणादायी नाटक।
जन्म : 12 अप्रैल, 1943, चिपलून (महाराष्ट्र)।
शिक्षा : एम.ए., एल-एल.बी. (ऑनर्स)।
अभिभाषक, लेखक, प्रवचनकार, समाजसेवी एवं राजनेता।
राष्ट्रसेविका समिति की सेविका।
सन् 1995 श्री अहिल्योत्सव समिति, इंदौर की अध्यक्ष।
सन् 1989 से निरंतर (आठ बार) लोकसभा में इंदौर (म.प्र.) का प्रतिनिधित्व।
महिला एवं बाल विकास, संचार एवं पेट्रोलियम विभागों की पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री।
विभिन्न देशों में सांसद एवं लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका में भारत का प्रतिनिधित्व।
संप्रति : 16वीं लोकसभा की अध्यक्ष।