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हिंदी कविता के मौजूदा परिदृश्य में धीरे-धीरे जगह बनानेवाली भावना शेखर ने ‘मौन का महाशंख’ तक आते-आते एक पहचान बना ली है। भाव, संवेदना और कथ्य के उर्वर परिवेश में उम्मीद की हरी पत्तियों को अँजुरी में भींचे भावना शेखर के भीतर का कवि कल्पना की पगडंडियों पर चलते हुए हर बार मिट्टी के सच्चे रंग की तरह एक नया जन्म लेता है।
कवयित्री के कचनार-गंधी मन के दरवाज़े जब खुलते हैं तो जैसे जीवन की उदासियाँ किसी एक कोने में ठिठककर रह जाती हैं। मान-मनुहार और उद्दीप्त अनुराग के रंगों से रँगी भावना शेखर की कविताओं पर बेशक वक्त का चाबुक कम नज़र आता है, लेकिन कविताओं के पीछे एक सीधा-सच्चा, निर्मल मन अवश्य है, जो किसी प्रायोजित स्वाँग, दुःख या जद्दोजहद के अहसासों से परे है और परदुःख से कातर होकर किसी लाचार आँसू को अपने भाल पर रखने में अपना गौरव समझता है।
भावना शेखर हिंदुस्तानी ज़बान की कवयित्री हैं, जिनका शायराना अंदाज़ हौले-हौले अपना बना लेता है। वे अपनी कविताओं में पुरुष को प्रतिलोम के रूप में न खड़ा कर स्त्री को महाकविता के अनन्य छंद के रूप में देखे जाने का आग्रह करती हैं।
भावना शेखर की कविताओं में ‘काश’ की कशिश है तो यक्ष हुए जाते मन की विदग्ध चेतना भी। स्त्री की पीड़ा का संसार है तो पुरुष के साहचर्य पर एतबार जतानेवाला एक समावेशी मन भी। उसे भरोसा है, सुषुप्त वेदना की नदी को साँसों के रेशमी कंकड़ फेंककर कोई हौले से जगा दे तो अँगड़ाई लेकर नदी जी उठेगी और पत्थर का सीना भी बज उठेगा; जैसे मौन में महाशंख।
—ओम निश्चल
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अनुक्रम
मेरी बात—7
1. हिसाब—11
2. जूते—14
3. कवच—16
4. शोर—18
5. जानवर—20
6. नई जाति के पेड़—23
7. हक़—25
8. पगडंडी—28
9. औरत का कमरा—31
10. प्रेम——33
11. लड़कियाँ—35
12. औरत और पायदान —37
13. उफ़... 39
14. चुप हूँ मैं—41
15. खाना बनानेवाली औरतें—42
16. मेट्रो का लेडीज़ डिब्बा —44
17. यक्षप्रश्न—47
18. देह पर की नदी—49
19. पुरुष—51
20. मन कचनार हो गया —54
21. वियोग—57
22. प्रेम को मुक्त करो —59
23. तुमने दिया है —61
24. मन यक्ष हुआ जाता है—62
25. नदी—64
26. देर कर दी—65
27. नेह-कण—67
28. चुल्लू भर प्रेम—68
29. सर्दी—71
30. हिमाचल—72
31. मैं और नीम—75
32. झोंपड़ी बहुत उदास है—77
33. पीपल—80
34. वो सरमाया था —84
35. वनजा —86
36. हे पुरुष!—88
37. काश!—91
38. माई कभी नहीं हँसेगी —94
39. मुनिया—98
40. मन——101
41. तितिक्षा —103
42. सफाई—104
43. पत्थरों में इक नदी —105
44. पानी—106
45. बदल गए मायने —108
46. सिलवटें —110
47. पुल—111
48. दुःख—112
49. भोर —114
50. प्रारब्ध—115
51. क्यों नहीं —116
52. पुष्पक विमान-सा —117
53. रेलगाड़ी से—119
54. वेदना—121
55. हथेली के घाव—122
56. धृति—124
57. ज्वार उतरेगा—125
58. फ़रमान —127
59. एक मुट्ठी धूप—128
60. प्रतिरोध—129
61. काफ़ी है—130
62. आईने—131
63. गुलाब से रिश्ता—133
64. लफ़्ज़—135
65. मैं चाहती हूँ —136
66. आसां नहीं—137
67. आसमां का चौकोर
टुकड़ा—138
68. खौफ़ज़दा है आसमां—139
69. तिश्नगी—140
70. गुमशुदा लम्हे—141
71. कहीं तो कभी तो—142
72. ज़िंदगी और कॉफ़ी—143
73. महफ़ूज़—144
भावना शेखर
जन्म एवं शिक्षा : मूलतः हिमाचल प्रदेश से जुड़ी, दिल्ली में जनमी, लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर द्वय (हिंदी, संस्कृत), एम.फिल. और पी-एच.डी.। गत सत्ताईस वर्षों से अध्यापन।
रचना-संसार : आस्तिक दर्शनों में प्रतिपादित मीमांसा सिद्धांत, सत्तावन पँखुडि़याँ, साँझ का नीला किवाड़, मौन का महाशंख, जुगनी, खुली छतरी, जीतो सबका मन, मिलकर रहना। अनेक कविताओं का जापानी भाषा में अनुवाद।
गतिविधियाँ : आकाशवाणी के सर्वभाषा कवि सम्मेलन, बिहार के राष्ट्रीय ‘कविता समारोह’ और भारत-जापान द्वारा आयोजित पोएट्री सिंपोजियम में काव्य-पाठ। बिहार में ‘जागरण संवादी’ एवं पटना लिटरेचर फेस्टिवल में भागीदारी, छत्तीसगढ़ सरकार के ‘हिंदी हैं हम’ और दिल्ली सरकार की शैक्षिक कार्यशालाओं में विशेषज्ञ की भूमिका। इंडोनेशिया में ‘रामायण का वैज्ञानिक संदर्भ’ पर व्याख्यान।
पुरस्कार-सम्मान : सर्वश्रेष्ठ बालकथा का मधुबन संबोधन पुरस्कार एवं TERI संस्था द्वारा पुरस्कार। हिंदी साहित्य सम्मेलन, बिहार द्वारा साहित्यसेवी एवं शताब्दी पुरस्कार। नव अस्तित्व फाउंडेशन, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर द्वारा साहित्य के लिए वीमेंस अचीवर्स अवार्ड।
संप्रति : ए.एन. कॉलेज पटना में अध्यापन।
संपर्क : 8809931217