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“कितनी ही बार तो मैंने इस खुशी को तुममें देखा है! मैंने इसे तुम्हारी आँखों में देखा और अनुमान किया है। तुमने अपने बच्चों को अपनी जीत समझकर उनसे प्यार किया, इसलिए नहीं कि वे तुम्हारा अपना खून थे। वे तो मेरे ऊपर तुम्हारी जीत के प्रतीक थे। वे प्रतीक थे मेरी जवानी, मेरी खूबसूरती, मेरे आकर्षण, मेरी प्रशंसाओं के ऊपर और उन लोगों पर तुम्हारी जीत के जो मेरे आगे खुलकर मेरी प्रशंसा नहीं करते थे, बल्कि धीमे शब्दों में करते रहते थे। तुम उन पर घमंड करते हो, उनकी परेड लगाते हो, तुम उन्हें अपनी गाड़ी में ब्वा द बूलॉनी में घुमाने और मॉमॉराँसी में चड्डी गाँठने ले जाते हो। तुम उन्हें दोपहर का शो दिखाने थिएटर ले जाते हो, ताकि लोग तुम्हें उनके बीच देखें और कहें, ‘कितना रहमदिल बाप है!’ “औरत द्वारा अपने पति को धोखा देने की बात मैं कभी नहीं मान सकती। यदि मान भी लिया जाए कि वह उसे प्रेम नहीं करती, अपनी कसमों और वायदों की परवाह नहीं करती, फिर भी यह कैसे हो सकता है कि वह अपने आपको किसी दूसरे पुरुष के हवाले कर दे? वह दूसरों की आँखों से इस कटु-षड्यंत्र को कैसे छिपा सकती है? झूठ और विद्रोह की स्थिति में प्रेम करना कैसे संभव हो सकता है?”
—इसी पुस्तक से
विश्वप्रसिद्ध कथाकार गाय दी मोपासाँ की असंख्य कहानियों में से चुनी हुई कुछ लोकप्रिय कहानियाँ, जिनमें मानवीय संवेदना है, सामाजिक सरोकार हैं और जीवन के विविध रंगों की झाँकी है।
प्रकृतिवादी विचारधारा से प्रभावित गाय दी मोपासाँ का जन्म 5 अगस्त, 1850 को हुआ। वे निर्विवाद रूप से फ्रांस के सबसे महान् कथाकार हैं। जब वे ग्यारह वर्ष के थे, तभी उनके माता-पिता अलग हो गए। उनकी प्रारंभिक शिक्षा धार्मिक स्कूलों में हुई, जिनसे उन्हें चिढ़ थी। उन्होंने फ्रांस और जर्मनी के युद्ध में भाग लिया, अलग-अलग नौकरियाँ कीं और पत्रों में स्तंभ लिखे। सन् 1880 से 1891 तक का समय इनके जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण काल था। इन 11 वर्षों में मोपासाँ के लगभग 300 कहानियाँ, 6 उपन्यास, 3 यात्रा-संस्मरण एवं एक कविता संग्रह प्रकाशित हुए। 6 जुलाई, 1893 को उनका देहावसान हुआ।