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हिंदी व्यंग्य में दो तरह के लोग व्यंग्य लिख रहे हैं—एक वे, जिन्हें व्यंग्य की व्याकरण तथा सौंदर्यशास्त्र की समझ है और दूसरे वे, जिन्हें इस चीज की कोई समझ नहीं। इसी दूसरे वर्ग में आप एक उपवर्ग उन लोगों का भी कर सकते हैं, जिन्हें खुद तो समझ है नहीं पर साथ ही वे ऐसे लोगों के खिलाफ हैं, जिन्हें व्यंग्य के सौंदर्यशास्त्र की समझ और परवाह है।...इसी तरह से आप हिंदी व्यंग्य को दो तरह से लेखन में बाँट सकते हैं—पहला वह, जो वास्तव में व्यंग्य लेखन है और दूसरा वह, जो व्यंग्य लेखन है ही नहीं, परंतु व्यंग्य के नाम पर न केवल परोसा जा रहा है, वरन् उसको शोध, समीक्षा, पुरस्कारों तथा चर्चाओं के गले उतारा भी जा रहा है। जाहिर है कि इस परिदृश्य में भ्रम और आपाधापी जैसा माहौल बनना है। वह बना भी है। इस भ्रम के कुहासे में जो गिने-चुने लोग व्यंग्य को उसके व्याकरण, सौंदर्यशास्त्र तथा बनावट के सिद्धांतों पर रच रहे हैं उनमें पूरन सरमा का नाम मैं बेहद सम्मान से लेता हूँ।
विसंगतियों को सूक्ष्म नए कोण से देखने की क्षमता पूरन सरमा में है और वे बेहद महीन मार करने में माहिर व्यंग्यकार हैं, जो हिंदी व्यंग्य में दुर्लभ सा होता जा रहा है। वे व्यंग्य को कहीं भी सपाट नहीं होने देते और पाठक को बाँधे रखनेवाली किस्सागोई वाली भाषा उन्हें आती है। वे रोचक हैं। वे विविधतापूर्ण भी हैं। वे नए प्रयोग भी कर लेते हैं।
हिंदी व्यंग्य में भी ऐसे कितने लेखक आपको मिलेंगे, जिनकी किताब आप खरीदकर पढ़ने की इच्छा रखते हैं? पूरन सरमा ऐसे लेखक हैं।
—डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी
जन्म : 14 मार्च,1954।
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी), पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा।
चार दशकों से हिंदी एवं राजस्थानी लेखन में प्रवृत्त। व्यंग्य लेखन के लिए अनेक बार पुरस्कृत एवं सम्मानित। व्यंग्य मूल विधा, लेकिन उपन्यास एवं नाटक भी लिखे। राजस्थान साहित्य अकादमी के ‘कन्हैयालाल सहल पुरस्कार’ से व्यंग्य के लिए सम्मानित। ‘समय का सच’ उपन्यास माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान के अनिवार्य हिंदी पाठ्यक्रम में सात वर्षों तक पढ़ाया गया।
प्रकाशित पुस्तकें : एक थी बकरी, आत्महत्या से पहले, स्वयंवर आधुनिक सीता का, तैमूरलंग का तोहफा, इक्कीसवीं सदी का साहित्यकार, घायल की गति घायल जाने, नए नेता का चुनाव, गली वाले नेताजी, अफसर की गाय, मेरी लघु व्यंग्य रचनाएँ, बड़े आदमी, मुख्यमंत्री दिल्ली गए, दफ्तर में वसंत, साहित्य की खटपट, मेरी व्यंग्य रचनाएँ व घर-घर की रामलीला (व्यंग्य-संग्रह); समय का सच (उपन्यास) एवं बाल-साहित्य की करीब बीस पुस्तकों का प्रकाशन।
संप्रति : स्वतंत्र लेखन।
संपर्क : 124/61-62, अग्रवाल फार्म, मानसरोवर, जयपुर-302020 (राज.)
दूरभाष : 0141-2782110, 9828024500