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अनेक दूसरे लोगों की तरह मैं भी विदेशी साम्राज्यवाद के जुए से मातृभूमि को आजाद कराने के लिए क्रांतिकारी आंदोलन से करीब से जुड़ा था। गांधीजी जब सन् 1915 के शुरू में दक्षिण अफ्रीका से आए तो उनके निकट संपर्क में आने वाला मैं पहला राजनीतिक कार्यकर्ता था। मैं उनके पहले सत्याग्रह आंदोलन के साथ भी करीब से जुड़ा था, जो चंपारण (बिहार) में गोरे निलहों के अत्याचार के खलाफ हुआ।
हमारी आजादी की लड़ाई के सबसे महत्वपूर्ण और बेचैनी वाले दौर में मैं कांग्रेस का बारह वर्ष तक महामंत्री रहा। जिस साल देश को आजादी मिली, उस वक़्त मैं कांग्रेस अध्यक्ष था। मेरे दोस्तों को लगता है कि हमारे राष्ट्रीय आंदोलन की महत्वपूर्ण घटनाओं और व्यक्तियों के बारे में मेरी जानकारी काफी अंतरंग और नई चीजें सामने लाने वाली होगी। इस कारण मेरे संस्मरणों का कुछ ऐतिहासिक महत्व होगा। इसलिए मैंने जो कुछ लिखा है, उसमें अपने बारे में कम लिखकर हमारी आजादी की लड़ाई पर ज्यादा लिखा है।
इस पुस्तक को मैंने ‘माई टाइम्स : मेरा दौर’ नाम दिया है, पर इसमें ‘मैं’ का जिक्र उतना ही भर है, जितना जरूरी है। मेरे जीवन की कथा में भी कांग्रेस और स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का बड़ा हिस्सा समाया हुआ है। इसलिए यह कोई आत्मकथा न होकर, इन बड़ी और महत्वपूर्ण घटनाओं का रिकॉर्ड भी है और इनका वर्णन करते हुए मैंने यह जिक्र कम किया है कि मैंने क्या-क्या किया, बल्कि यह बताने की कोशिश की है कि मैंने तब क्या देखा और समझा।