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Mera Rasta Aasaan Nahin   

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Author Acharya Janaki Vallabh Shastri
Features
  • ISBN : 9789350485620
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Acharya Janaki Vallabh Shastri
  • 9789350485620
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2016
  • 247
  • Hard Cover

Description

अराजक और अनास्था की विषम स्थिति में भी मूल्यों की तलाश करनेवाले बड़े आस्थावादी रचनाकार हैं आचार्यश्री जिन्हें हम सांसारिकता से विमुख हो संतुलित और समग्र संवेदनात्मक संसार की रचना करने की बेचैनी से भरे हुए देखते रहे हैं।
शास्त्रीजी गीतकार बड़े हैं या गद्यकार; यद्यपि कहना कठिन है, फिर भी उनके गद्य-सृजन की पड़ताल में साफ-साफ उनके कवि-व्यक्‍त‌ित्व की गहरी छाप दृष्‍ट‌िगोचर होती है। अभी उनकी गद्य-कृतियों का सम्यक् मूल्यांकन नहीं हुआ है। निराला, प्रसाद, महादेवी, बच्चन, दिनकर कवि तो बड़े थे ही गद्यकार भी बड़े और महत्त्वपूर्ण थे। इन विलक्षण और विशिष्‍टतम रचनाकारों की श्रृँखला में आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री अन्यतम हैं। अनुपम और अतुलनीय है।
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की गद्य-विधाओं में आलोचना, ललित निबंध, कहानी, उपन्यास, रिपोर्ताज, संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत, नाट्य-लेखन के साथ ही डायरी और संपादकीय भी साहित्यिक, सांस्कृतिक और वैचारिक ऊँचाइयों को छूते हैं।
शास्त्रीजी की आलोचनात्मक दृ‌ष्‍ट‌ि के निराला भी कायल थे। निराला की प्रबंधात्मक कृति तुलसीदास की आलोचना शास्त्रीजी ने अपने यौवनकाल में की थी। वह आलोचना छपी तो निराला और आचार्य नंददुलारे वाजपेयी भी प्रभावित हुए थे।

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अनुक्रम

भूमिका : मैं गाऊँ तेरा मंत्र समझ — Pgs. 7

ललित निबंध

1. शरद हिमालय में — Pgs. 17

2. रस — Pgs. 21

3. कुल और कर्म — Pgs. 28

4. मन की बात — Pgs. 34

संस्मरण

5. धुआँ-धुआँ दिन के जले-बुझे अवशेष — Pgs. 49

6. प्रसाद की याद — Pgs. 58

7. निराला-दर्शन — Pgs. 69

8. अज्ञेय के साथ — Pgs. 88

9. निष्क्रमण — Pgs. 98

यात्रा-वृत्तांत

10. अजंता की ओर — Pgs. 121

उपन्यास-अंश

11. कालिदास — Pgs. 185

रेडियो रूपक

12. प्रतिध्वनि — Pgs. 209

स्मृति आख्यान

13. नाट्य सम्राट् : श्री पृथ्वीराज कपूर — Pgs. 229

The Author

Acharya Janaki Vallabh Shastri

जन्म : माघ शुक्ल द्वितीया 1916।
विलक्षण प्रतिभा-संपन्न आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री का आवास ‘निराला निकेतन’ साहित्य, संस्कृति, कला-साधकों के लिए तीर्थस्थल है। आचार्यश्री की साधना ने इसे सिद्ध और मुजफ्फरपुर (बिहार) को प्रसिद्ध किया। विभिन्न विधाओं में निरंतर लिखते हुए कई दर्जन पुस्तकों के लेखक शास्त्रीजी मृत्युपर्यंत प्रकृति और मनुष्य के साथ ही मानवेतर प्राणियों को भी स्नेह-सिंचित करते रहे। ‘कालिदास’, ‘राधा’, ‘हंसबलाका’, ‘कर्मक्षेत्रे मरुक्षेत्रे’ जैसी कृतियाँ अपनी विषय-वस्तु और प्रतिपादन शैली के कारण कालजयी हैं। कई सम्मानों-पुरस्कारों से अलंकृत शास्त्रीजी का स्वाभिमानी व्यक्‍त‌ि‍त्व साधकों के लिए प्रेरक-संबल रहा है। लेखक, चिंतक, मनीषी और ऋषि आचार्यजी कई पीढि़यों के मार्गदर्शक और निर्माता रहे हैं। संस्कृत के प्रकांड पंडित और कवि शास्त्रीजी अंग्रेजी तथा उर्दू के विद्वान् अध्येता थे।
स्मृति शेष : 7 अप्रैल, 2011 ।

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