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बाबू गुलाबरायजी के संबंध में कुछ साहित्यकारों के विचार स्मृति ग्रंथ से—
सहज मानव और महान्ï साहित्यि
बाबूजी अधीतमाध्यपित मर्जित यश: के मूर्तिमान् रूप थे। उनके स्नेह, वैदुष्य और सहृदयता ने अनेक कृती व्यक्तित्वों को गौरवशाली बनाया है। उनको गुरु और गुरुतुल्य माननेवालों की संख्या बहुत अधिक है। उन्होंने हिंदी संसार को बहुत दिया है। वे दोनों हाथ लुटानेवालों में थे। कभी उन्होंने प्रतिपादन की आशा नहीं रखी। वे सब प्रकार से महान् थे। —हजारी प्रसाद द्विवेदी
जागरू• साहित्य
आदरणीय भाई गुलाबरायजी हिंदी के उन साधक पुत्रों में थे, जिनके जीवन और साहित्य में कोई अंतर नहीं रहा। तप उनका संबल और सत्य स्वभाव बन गया था। उन जैसे निष्ठावान्, सरल और जागरूक साहित्यकार विरले ही मिलेंगे। उन्होंने अपने जीवन की सारी अग्निपरीक्षाएँ हँसते-हँसते पार की थीं। उनका साहित्य सदैव नई पीढ़ी के लिए प्रेरक बना रहेगा।
—महादेवी वर्मा
अपना प्रमाण
बाबूजी ने हिंदी के क्षेत्र में जो बहुमुखी कार्य किया, वह स्वयं अपना प्रमाण आप है। प्रशंसा नहीं, वस्तुस्थिति है कि उनके चिंतन, मनन और गंभीर अध्ययन के रक्त-निर्मित गारे से हिंद भारती के मंदिर का बहुत सा भाग प्रस्तुत हो सका है।
—उदयशंकर भट्ट
साहित्यानुष्ठा
बाबू गुलाबरायजी आधुनिक हिंदी के विशिष्ट प्राणवान्, निर्माता, साहित्यानुष्ठा हैं। जीवन भर उन्होंने हिंदी को समृद्ध करने के लिए सारस्वत अनुष्ठान किया और ऐसे सृजनशील साहित्य-सेवियों का निर्माण किया जिनका गौरव हिंदी के लिए श्रीवर्द्धक है।
—सुधाकर पांडेय
जन्म : 17 जनवरी, 1888 को इटावा (उ.प्र.) में।
शिक्षा : एम.ए. (दर्शनशास्त्र), एल-एल.बी., डी.लिट. (आगरा विश्वविद्यालय द्वारा मानद उपाधि)।
अवागढ़ राज्य में एक वर्ष कंट्रोलर ऑफ सेंट जोंस कॉलेज, आगरा में हिंदी का अध्यापन (अवैतनिक)। नागरी प्रचारिणी सभा, आगरा में ‘साहित्य रत्न’ तथा ‘विशारद’ की कक्षाओं का अध्यापन (अवैतनिक)। सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं एवं समितियों के नीति संचालन में सहयोग।
‘साहित्य संदेश’ पत्रिका तथा अनेक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक ग्रंथों का संपादन।
प्रकाशन : दर्शन, समीक्षा, निबंध, आत्म-जीवनी और जीवन प्रकीर्ण पर लगभग पचास पुस्तकें लिखीं तथा कुछ संपादित कीं।
सम्मान/पुरस्कार : साहित्यकार संसद्, प्रयाग और प्रांतीय व केंद्रीय सरकारों द्वारा पुरस्कृत।
हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की परिषदों; ना.प्र. सभा, आगरा; ब्रज साहित्य मंडल तथा उच्च संस्थाओं का सभापतित्व।
स्मृति-शेष : 13 अप्रैल, 1963।