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‘मेरे सपने हुए सच’ एक पिता के साधनहीन होने के बावजूद अपने पुत्र को शिक्षा के औजार से सक्षम और शक्तिमान् बनाने की महागाथा है। यह जीवन-कथा व्यक्ति के भीतर आगे बढ़ने की जिजीविषा को समय के प्रत्येक पल और समाज के प्रत्येक संसाधन के सर्वोच्च उपयोग का शास्त्र है। यह चारों ओर से बेबस कर दिए गए एक पिता का जीवन-समर में अपने असहाय पुत्र को कर्मक्षेत्र में अर्जुन बनने के लिए दिया गया व्यावहारिक ज्ञान का दस्तावेज है। यह पुस्तक एक पूरे परिवार की संघर्ष-यात्रा का चित्र है।
यह जीवन-कथा सामाजिक परिस्थितियों का सटीक बयान है और ढहते पारिवारिक मूल्यों के बीच संस्कारों पर आधारित जीवनशैली की स्थापना है। व्यापारिक लेन-देन को ही जीवन-मूल्य माननेवाले समाज में निस्स्वार्थ भाव से मदद करनेवाले उज्ज्वल चरित्र भी पुस्तक के प्राणबिंदु हैं। कुल मिलाकर पुस्तक
इस दौर की जीवन-व्यवस्था में व्यक्ति
के चारित्रिक साहस की विजय-गाथा
है, जो दुर्गम दुरवस्थाओं के दावानल से बाहर निकालने में समर्थ मार्ग दिखाती है। यह एक दिशा है—जीवन को सही मायनों में जीने और सपने को साकार करने के जज्बे की।
‘हर संघर्ष को उसका स्थान मिले’ को अपना ध्येय वाक्य माननेवाली प्रीति कुमारी समाज में ‘पॉजीटिव रिपोर्टिंग’ को अपना लेखन मानती हैं। वे सामाजिक समस्याओं के बीच से जिंदगी तलाशनेवाले लोगों को ‘असली हीरो’ कहती हैं। इग्नू से एम.ए. और जम्मू से बी.एड. कर चुकी प्रीति मूलतः पूर्णिया जिले के जानकीनगर गाँव की रहनेवाली हैं। चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी प्रीति ने लक्ष्य और संघर्ष के बीच लुका-छिपी के खेल को बहुत संजीदगी से लिया है। वे चाहती हैं कि बुरे लोग बदलें, ताकि समाज की मासूमियत को मंच मिल सके।