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हिंदी साहित्य में जीवनियाँ बहुत कम हैं, जीवनियों में आत्म जीवनियाँ बहुत कम, आत्म जीवनियों में हास्य मात्रा बहुत कम और हास्य में साहित्यिक अथवा बौद्धिक हास्य बहुत कम। इसलिए बाबू गुलाब राय की पुस्तक ‘मेरी असफलताएँ’ अपना एक विशेष महत्त्व रखती है, क्योंकि इसमें एक सुलझे हुए और सुपठित व्यक्ति का आत्मचरित विनोद के प्रकाश से आलोकित होकर सामने आया है। आत्मचरित लिखने की प्रेरणा अंततः एक प्रकार के परिष्कृत अहंकार से ही मिलती है। पर बाबू गुलाब राय की विनोदप्रियता स्वयं अपनी ओर उन्मुख होकर उस अहंकार को कहीं भी उभरने नहीं देती।
भूमिका में बाबू गुलाब रायजी ने बड़े संकोच से कहा है कि उनके जीवन में कुछ भी असाधारण नहीं था, पर उन्होंने जान-बूझकर अपने जीवन के ऐसे ही प्रकरण चुने हैं, जिन्हें साधारण कहा जा सकता है। ऐसा करके उन्होंने गहरे विवेक का परिचय दिया है, क्योंकि ऐसे प्रकरण हर किसी के जीवन में आते हैं तो व्यापकता (यूनिवर्सेलिटी) का आकर्षण हो सकता है, जो हास्य के आवरण में आकर्षक हो उठता है।
गुलाब रायजी के हास्य की विशेषता यह है कि उसमें सहज भाव का आभास होता है। पर जैसा कि कोई साहित्यिक घाघ कह गया है, कला कला को छिपाने में है। पुस्तक में ‘मेरी कलम का राज’ नामक परिच्छेद में गुलाब रायजी ने स्वयं अपनी टेक्नीक
की अत्यंत सुंदर और निरपेक्ष (ऑब्जेक्टिव) विवेचना की है।
‘मेरे जीवन की अव्यवस्था’ शीर्षक लेख अपने ढंग का मास्टर पीस है। गुलाब रायजी निर्जीव नहीं हैं, उनकी सजीवता स्रद्बद्घद्घह्वह्यद्गस्र है, जैसे धुंध में बसा हुआ आलोक। इसलिए जहाँ उनका हास्य किसी को अछूता नहीं छोड़ता, वहाँ वह द्वेषदूषित भी नहीं है।
—सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
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अनुक्रम
दो शद बकलम खुद— Pgs. 5
तृतीय संस्करण की भूमिका— Pgs. 7
1. ‘बालस्तावत् क्रीडासत:’— Pgs. 11
2. मार्शल ला— Pgs. 15
3. उसे न भूलूँगा— Pgs. 22
4. नमो गुरुदेवेभ्यो— Pgs. 27
5. सेवा के पथ पर (मेरा दरबार-प्रवेश)— Pgs. 39
6. ‘सेवाधर्म परम गहनो योगिनामप्यगम्य:’— Pgs. 46
7. सैर का मूल्य— Pgs. 52
8. पट-परिवर्तन— Pgs. 59
9. मेरा मकान-1 (मेरी मूर्खता की साकार मूर्ति)— Pgs. 66
10. हानि-लाभ का लेखा-जोखा, (मेरा मकान-2)— Pgs. 73
11. नर से नारायण— Pgs. 80
12. आधा छोड़ एक को धाबै— Pgs. 88
13. खट्टे अंगूर— Pgs. 94
14. श्रीरामजी-प्रीत्यर्थम्— Pgs. 100
15. एक स्केच— Pgs. 110
16. शैल शिखिर पर— Pgs. 114
17. ठोक-पीटकर लेखक (राज़-1)— Pgs. 121
18. ठोक-पीटकर लेखक (राज़-2)— Pgs. 126
19. ठोक-पीटकर लेखक (राज़-3)— Pgs. 129
20. ‘हाथ झारि के चले जुआरी’— Pgs. 133
21. मेरी दैनिकी का एक पृष्ठ— Pgs. 137
22. ‘शरीरं व्याधि-मन्दिरम्’— Pgs. 143
23. प्रभुजी मेरे औगुन चित न धरो— Pgs. 150
24. परिशिष्ट-1 : चोरी : कला के रूप में— Pgs. 158
25. परिशिष्ट-2 : कंपोजीटर-स्तोत्र— Pgs. 163
26. परिशिष्ट-3 : मेरे नापिताचार्य— Pgs. 166
27. परिशिष्ट-4 : सारवीं वर्षगाँठ पर— Pgs. 170
28. बाबू गुलाब राय की नई असफलता ‘प्रज्ञेय’— Pgs. 174
जन्म : 17 जनवरी, 1888 को इटावा (उ.प्र.) में।
शिक्षा : एम.ए. (दर्शनशास्त्र), एल-एल.बी., डी.लिट. (आगरा विश्वविद्यालय द्वारा मानद उपाधि)।
अवागढ़ राज्य में एक वर्ष कंट्रोलर ऑफ सेंट जोंस कॉलेज, आगरा में हिंदी का अध्यापन (अवैतनिक)। नागरी प्रचारिणी सभा, आगरा में ‘साहित्य रत्न’ तथा ‘विशारद’ की कक्षाओं का अध्यापन (अवैतनिक)। सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं एवं समितियों के नीति संचालन में सहयोग।
‘साहित्य संदेश’ पत्रिका तथा अनेक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक ग्रंथों का संपादन।
प्रकाशन : दर्शन, समीक्षा, निबंध, आत्म-जीवनी और जीवन प्रकीर्ण पर लगभग पचास पुस्तकें लिखीं तथा कुछ संपादित कीं।
सम्मान/पुरस्कार : साहित्यकार संसद्, प्रयाग और प्रांतीय व केंद्रीय सरकारों द्वारा पुरस्कृत।
हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की परिषदों; ना.प्र. सभा, आगरा; ब्रज साहित्य मंडल तथा उच्च संस्थाओं का सभापतित्व।
स्मृति-शेष : 13 अप्रैल, 1963।