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Meri Nazar Se Duniya Ki Sair    

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Author Himanshu Joshi
Features
  • ISBN : 9789355627780
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Himanshu Joshi
  • 9789355627780
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2024
  • 168
  • Soft Cover
  • 200 Grams

Description

"हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हिमांशु जोशी ने अपनी दीर्घ साहित्यिक यात्रा के दौरान देश-विदेश में अनेक यात्राएँ कीं। इन यात्राओं में अरुणाचल, नगालैंड के दुर्गम सीमा क्षेत्र शामिल हैं तो सुदूर में ‘यातना शिविर’ अंडमान भी। नॉर्वे की अनोखी धरती में जहाँ नोबेल पुरस्कार विजेता ब्यौंसन का घर है, वहीं बर्गन की स्मृतियों के साथ-साथ सागर तट की वह मशाल भी है, जो भारतीय संत की याद में आज भी जलती रहती है।

इन यात्राओं के दौरान थाईलैंड में भारतीय संस्कृति की छाप हर जगह देखने को मिलती है। वहाँ ‘अयुध्या’, ‘रामकियन’ और ‘राम उद्यान’ भी दिखलाई देंगे। कुमाऊँ के घने जंगलों में उत्तर-पथ के रास्ते अंतिम पड़ाव में नैनीताल का सौंदर्य भी दिखता है। साथ ही अमरीका में आँखों देखा भारत महोत्सव का चमत्कार तथा और भी बहुत कुछ।

ये यात्रा-विवरण मात्र यात्रा के विवरण ही नहीं हैं वरन् इनमें कहीं इतिहास है, भूगोल के साथ-साथ साहित्य भी, कला एवं संस्कृति की मार्मिक छुअन भी। इसलिए ये वृत्तांत कहीं दस्तावेज भी बन गए हैं—जीए हुए अतीत के। पाठकों को इनसे एक संपूर्ण जीवन का अहसास होने लगता है। एक साथ वह बहुत कुछ ग्रहण करने में सफल होता है—शायद यह भी इन वृत्तांतों की एक सबसे बड़ी सफलता है।"

The Author

Himanshu Joshi

हिमांशु जोशी जन्मः4 मई, 1935, उत्तराखंड।
कृतित्व : यशस्वी कथाकारउपन्यासकार। लगभग साठ वर्षों तक लेखन में सक्रिय रहे। उनके प्रमुख कहानी-संग्रह हैं-'अंततः तथा अन्य कहानियाँ', 'मनुष्य चिह्न तथा अन्य कहानियाँ', 'जलते हुए डैने तथा अन्य कहानियाँ', 'संपूर्ण कहानियाँ, ‘रथचक्र', ‘तपस्या तथा अन्य कहानियाँ', ‘सागर तट के शहर' 'हिमांशु जोशी की लोकप्रिय कहानियाँ' आदि।
प्रमुख उपन्यास हैं-'अरण्य', ‘महासागर', 'छाया मत छूना मन’, ‘कगार की आग', 'समय साक्षी है', 'तुम्हारे लिए', ‘सुराज', 'संपूर्ण उपन्यास'। वैचारिक संस्मरणों में उत्तर-पर्व' एवं 'आठवाँ सर्ग' तथा कहानी-संग्रह ‘नील नदी का वृक्ष' उल्लेखनीय हैं। ‘यात्राएँ', 'नॉर्वे : सूरज चमके आधी रात' यात्रा-वृत्तांत भी विशेष चर्चा में रहे। उसी तरह काला-पानी की अनकही कहानी 'यातना शिविर में भी। समस्त भारतीय भाषाओं के अलावा अनेक रचनाएँ अंग्रेजी, नॉर्वेजियन, इटालियन, चेक, जापानी, चीनी, बर्मी, नेपाली आदि भाषाओं में भी रूपांतरित होकर सराही गईं। आकाशवाणी, दूरदर्शन, रंगमंच तथा फिल्म के माध्यम से भी कुछ कृतियाँ सफलतापूर्वक प्रसारित एवं प्रदर्शित हुईं। बाल साहित्य की अनेक पठनीय कृतियाँ प्रकाशित हुईं। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय अनेक सम्मानों से भी अलंकृत।
स्मृतिशेष: 23 नवंबर, 2018, दिल्ली।

 

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