₹900
सुदूर वेस्ट गारो हिल्स में जनमे पी.ए. संगमा सन् 1996 में लोकसभा के स्पीकर बने—ऐसा बननेवाले विपक्ष के पहले सदस्य थे। यह निश्चित रूप से भारतीय लोकतंत्र की जीत है। ‘मेरी राजनीतिक जीवन यात्रा’ भारतीय राजनीतिक परिदृश्य की सबसे आकर्षक हस्तियों में से एक के राजनीतिक जीवन को दिखाती है। यह एक छोटे से जनजातीय गाँव से देश की संसद् के सर्वोच्च स्तर तक उनके उदय पर नजर डालती है, जिसमें भारतीय राजनीति और विकास में उनके योगदानों के साथ ही, लोकतांत्रिक संस्थानों की रक्षा तथा जनसाधारण के कल्याण के लिए उनके निरंतर संघर्ष को बताया गया है।
लोकसभा और राज्यसभा में संगमा ने जितने भी भाषण दिए, उनमें से महत्त्वपूर्ण भाषणों को इसमें शामिल किया गया है। इसके साथ ही लोकसभा अध्यक्ष के रूप में उनके आदेशों, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और सेमिनारों में दिए उनके भाषणों को भी शामिल किया गया है। भारत की स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष में संसद् के सेंट्रल हॉल में उनका मध्य रात्रि का भाषण भी इसका हिस्सा है। इन भाषणों में देश के विकास और भारत के नागरिकों के प्रति एक प्रतिष्ठित सांसद की सोच और चिंता झलकती है; साथ ही दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की कार्य प्रणाली का भी परिचय मिलता है।
इस पुस्तक में जाने-माने नेताओं और विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियों के संदेश भी हैं, जिनमें प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों, राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों और मजदूर संघ के नेता शामिल हैं, जो संगमा के बहुआयामी व्यक्तित्व के विषय में बताते हैं। एक दूरदर्शी नेता के प्रति भावपूर्ण श्रद्धांजलि तथा युवा नेताओं, शोधकर्ताओं और सामान्य पाठकों के लिए भारतीय लोकतंत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दों पर उपयोगी सामग्री व प्रकाश डालने वाली संग्रहणीय पुस्तक।
____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
अनुक्रम
पूर्वकथन —Pgs. 5
संदेश —Pgs. 7-20
प्रस्तावना —Pgs. 21
1. परिचय —Pgs. 27
2. लेख —Pgs. 53
3. लोकसभा में भाषणों का चयन —Pgs. 75
4. राज्यसभा में भाषणों का चयन —Pgs. 297
पी.ए. संगमा
पूर्णो एजिटोक संगमा का जन्म सन् 1947 में हुआ था। सन् 1977 में वे मेघालय की तुरा संसदीय सीट से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। सन् 1980 में वे अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के संयुक्त सचिव बने और फिर उन्हें केंद्रीय कैबिनेट में शामिल किया गया। सांसद के रूप में अपने शानदार कॅरियर के दौरान उन्होंने अनेक पदों का कार्यभार सँभाला। सन् 1988 में वे मेघालय के मुख्यमंत्री बने। सन् 1996 के आम चुनावों के बाद उन्हें सर्वसम्मति से ग्यारहवीं लोकसभा का स्पीकर चुन लिया गया। वे विपक्ष के ऐसे पहले सदस्य थे, जिन्हें स्पीकर चुना गया था।
स्मृतिशेष : 4 मार्च, 2016