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Mewar Kesri Maharana Sanga   

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Author M.I. Rajasvi
Features
  • ISBN : 9789352660964
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • M.I. Rajasvi
  • 9789352660964
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2025
  • 152
  • Soft Cover
  • 300 Grams

Description

भारत के इतिहास में यदि राजपूताना की वीरगाथाओं का स्वर्णिम अध्याय न होता तो इसकी वैसी भव्यता न होती, जैसी आज है। यहाँ की धरती भले ही वर्षा की बूँदों के लिए तरसती रही हो, परंतु सत्ता-सिंहासन के लिए निरंतर होते रहे युद्धों से टपकते रक्त से यह भूमि सदैव सिंचित होती रही। आन-बान और शान के साथ ही सत्ता के षड्यंत्रों में रचे-बसे यहाँ के वीरतापूर्ण वातावरण में राजपूतों की महिमा का भव्य दर्शन होता है। इस भूमि पर जहाँ एक ओर सतियों ने जौहर की प्रचंड ज्वालाओं में भस्म होकर भारतीय नारी के दृढ संकल्प और सतीत्व की नई परिभाषा लिखी है, वहीं दूसरी ओर स्वतंत्रता प्रिय राजाओं और अन्य राजपूतों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा में अपने प्राण तक अर्पण कर दिए।
महान् राजा बप्पा रावल की संतति ने राजपूताना को अपने रक्त से सिंचित करके राजवंश का गौरव बढ़ाया और राजपूती शान का वर्चस्व बनाए रखा।  
प्रस्तुत  पुस्तक  ‘मेवाड़  केसरी महाराणा साँगा’ में उनके अपार धैर्य और असीम पराक्रम की गौरवगाथा है, जो राजपूताना की अमर कहानी है। 
शौर्य, पराक्रम, बलिदान, त्याग के प्रतीक महाराणा साँगा की प्रेरणाप्रद जीवनगाथा।

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अनुक्रम

दो शद—5

1. प्रजा-वत्सल महाराणा रायमल—9

2. कुमारों का आखेट-गमन—13

3. एक उाम सुझाव—17

4. ईर्ष्या की आग—20

5. सूरजमल की कुटिल चाल—24

6. चारणी माता की भविष्यवाणी—28

7. पृथ्वीराज सूरजमल के षड्यंत्र-पाश में—32

8. पृथ्वीराज का संग्राम पर प्राणघातक प्रहार—36

9. सरदार जैतमलोट का बलिदान—40

10. जयमल और सूरजमल की कुत्सित योजना—44

11. रानी रतनकँवर का संताप—47

12. श्रीनगर में सैनिक पराक्रम—52

13. पृथ्वीराज को देश-निकाला—57

14. श्रीनगर रियासत में साँगा का सम्मान—61

15. जयमल का राजकुमारी तारा से प्रणय निवेदन—64

16. कुँवर साँगा के विवाह का प्रस्ताव—69

17. कुँवर जयमल का अंत—73

18. पृथ्वीराज बदनोर में—77

19. पृथ्वीराज की टोडा-विजय—81

20. साँगा के विरुद्ध गुप्त योजना—84

21. पृथ्वीराज के विवाह की अनुमति—87

22. मेवाड़ की नवीन स्थिति पर चिंतन—92

23. पृथ्वीराज का षड्यंत्रकारी सूरजमल से सामना—95

24. साँगा के गुप्तवास का रहस्योद्घाटन—99

25. पृथ्वीराज का पराक्रम—101

26. राव कर्मचंद की सलाह—104

27. उड़ गए पृथ्वीराज के प्राण-पखेरू—106

28. साँगा बने मेवाड़ के महाराणा—110

29. दिल्ली पर आक्रमण की योजना—115

30. इब्राहिम लोदी की पराजय—118

31. महाराणा साँगा का अतुलित पराक्रम—121

32. महाराणा साँगा की मालवा-विजय—125

33. महाराणा साँगा की गुजरात विजय—128

34. मलिक अयाज की निराशा—131

35. बाबर के विरुद्ध अभियान की योजना—135

36. राजपूत-अफगान गठबंधन—140

37. खानवा की पराजय—146

38. जीवन का अंतिम अध्याय—149

The Author

M.I. Rajasvi

जन्म : 2 जून, 1967 को ग्राम लाँक, जिला शामली, उत्तर प्रदेश में।शिक्षा : स्नातक (उस्मानिया विश्‍वविद्यालय, हैदराबाद)।
कृतित्व : ‘हरियाणा हैरिटेज’ में संपादन कार्य किया। दिल्ली के कई प्रतिष्‍ठित प्रकाशन संस्थानों के लिए वैतनिक एवं स्वतंत्र रूप से संपादन-लेखन कार्य; विभिन्न प्रकाशन संस्थानों से अब तक लगभग 65 पुस्तकें प्रकाशित। देश की सामाजिक समस्याओं पर 10 कहानियाँ एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर अनेक लेख प्रकाशित।

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