₹300
सन् 1997 में जब असम में उग्रवाद चरम पर था, तब लेफ्टिनेंट जनरल एस.के. सिन्हा को वहाँ का राज्यपाल बनाया गया। अपने कार्यकाल के दौरान किस तरह उन्होंने इन चुनौतियों का सामना किया, प्रस्तुत पुस्तक में इसका विस्तृत उल्लेख है। असम में शांति एवं व्यवस्था बहाल करने के लिए उन्होंने अपनी सैन्य पृष्ठभूमि का उपयोग करते हुए अनेक व्यावहारिक योजनाएँ बनाईं।
लेखक ने असम में अनोखे भावनात्मक दृष्टिकोण का परिचय दिया। विद्रोही तत्त्वों से सीधा संवाद किया, उनकी मानसिकता बदली और उन्हें वापस राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया। यही नहीं, असम की सभ्यता-संस्कृति को उन्होंने जाना-समझा और राज्य के डरे-सहमे लोगों के बीच जाकर खुशियों की सुगंध फैलाई।
असम में भयमुक्त वातावरण तैयार करने के प्रयासों और असम के हितों की रक्षा करने के कारण वहाँ की जनता ने उन्हें ‘असम की मिट्टी के सच्चे सपूत’ की उपाधि दी। वहाँ के एक समाचार-पत्र ‘नॉर्थ-ईस्ट टाइम्स’ ने लिखा—‘प्रासंगिक प्रश्न यह है कि फिर सच्चा असमी कौन है? ले.जन. (अ.प्रा.) एस.के. सिन्हा एक सच्चे असमी हैं, क्योंकि वह सच्चे मन से असमी जनसमुदाय के वास्तविक हित की बात सोचते हैं।’ प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे लोकप्रिय और कर्मशील शासक द्वारा असम में आशा की लौ जगाने के प्रयासों का वर्णन है, जो पाठकों को देश और समाज में व्याप्त संकट-अवरोधों और इनसे संघर्ष करके मार्ग बनाने के लिए अधिक जागरूक और संवेदनशील बनाएगी।
लेफ्टिनेंट जनरल (अ.प्रा.) एस.के. सिन्हा, पी.वी.एस.एम. का जन्म 1926 में हुआ। सन् 1943 में पटना विश्वविद्यालय से स्नातक; इसके बाद जाट रेजीमेंट में नियुक्ति, फिर 5-गोरखा राइफल्स में स्थानांतरण, कश्मीर लड़ाई (1947) एवं प्रथम भारत-पाक युद्ध (1947-48) से शुरू से अंत तक जुड़े रहे।
सेना में अपने लंबे कार्यकाल के दौरान जनरल सिन्हा ने प्लाटून से लेकर फील्ड आर्मी तक सभी स्तरों पर कमान सँभाली। 1973 में उत्कृष्ट सेवा के लिए ‘परम विशिष्ट सेवा मेडल’ (पी.वी.एस.एम.) से अलंकृत; अंतिम नियुक्ति सेना उप-प्रमुख के रूप में हुई, जिसके बाद 1983 में सेना से त्यागपत्र दे दिया।
नेपाल में भारत के राजदूत के रूप में दोनों देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों को नई ऊँचाई देने और नेपाल में लोकतंत्र की बहाली में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन् 1997 में असम के राज्यपाल के रूप में उन्होंने अद्भुत कार्य किया, जिससे ‘असम की मिट्टी के सच्चे सपूत’ कहलाए। 2003 में आतंकवाद ग्रस्त राज्य जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने, वहाँ भी उन्होंने राज्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए जो कुछ किया, वह इस कृतज्ञ राष्ट्र की स्मृति में अभी तक ताजा है।