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पूर्वोत्तर भारत में सैकड़ों जनजातियाँ अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषाई विविधताओं के साथ लंबे समय से निवास करती आ रही हैं। इन जातियों के रहन-सहन, तौर-तरीके, विश्वासों में उतना ही भेद है, जितना पूर्वोत्तर भारत एवं शेष भारत में। यहाँ की जनजातियों का कोई प्राचीन लिखित साहित्य, लिखित इतिहास एवं लिखित साक्ष्य प्राप्त नहीं होता है।
प्राचीन काल से इन जनजातियों के पास लोक-साहित्य सृजन की एक समृद्ध परंपरा रही है। प्राचीन काल से ये लोक-साहित्य सृजित, विकसित, हस्तांतरित होते हुए मौखिक परंपरा में आज तक चले आ रहे हैं। इन जनजातियों के प्राचीन सामाजिक जीवन, सांस्कृतिक तौर-तरीके, रहन-सहन, खान-पान, पहनावा-ओढ़ावा, धार्मिक विश्वासों आदि के बारे में जानने के आज ये एक सशक्त माध्यम हैं।
मिजो जनजातियों के पास भी प्राचीन लोक-साहित्य और लोककथाओं का एक बहुमूल्य खजाना है, जो उनके प्राचीन सामाजिक जीवन, सांस्कृतिक तौर-तरीके, रहन-सहन, खान-पान, पहनावा-ओढ़ावा, धार्मिक विश्वासों आदि के बारे में जानने का आज एक सशक्त माध्यम हैं। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर इन मिजो लोककथाओं का संकलन प्रस्तुत है, ताकि पाठक वहाँ की लोक-संस्कृति, परंपराओं और मान्यताओं को जान सकें।
यशवंत सिंह
जन्म स्थान : ग्राम-मकराँव, जिला-हमीरपुर (उ.प्र.)।
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी), नेट/जे.आर.-एफ., डी.फिल. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)।
रचनात्मक उपलब्धियाँ : ‘बुंदेलखंडी लोककथाओं में कथाभिप्राय’ शीर्षक से एक पुस्तक तथा 52 आलेख देश की विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित। 37 राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, संगोष्ठियों में सहभागिता एवं आलेख-व्याख्यान प्रस्तुति।
मार्गदर्शन : (क) क.मु. हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ आगरा में अध्यापन के दौरान 28 छात्र/छात्राओं ने एम.फिल. (हिंदी) उपाधि के लिए लघुशोध-प्रबंध पूर्ण किया। (ख) हिंदी विभाग, मणिपुर विश्वविद्यालय इंफाल में दो शोध-छात्राओं ने पी-एच.डी. उपाधि के लिए शोध-प्रबंध पूर्ण किया।
पुरस्कार : ‘हिंदी भाषा भूषण’ मानद उपाधि, साहित्य मंडल, नाथद्वारा, राजस्थान।
सदस्य, विशेषज्ञ समिति, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली तथा सदस्य, एंटी हाइजैकिंग टीम, इंफाल इंटरनेशनल एयरपोर्ट, मणिपुर।
संप्रति : प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग, मणिपुर विश्वविद्यालय।