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असाधारण व्यक्तित्व और कर्मठता के धनी श्री मूलचंद्र अग्रवाल ने ‘विश्वमित्र’ हिंदी दैनिक को न केवल लोकप्रियता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाया, देश के पाँच महानगरों से इसके संस्करण प्रकाशित किए, अपितु विश्वमित्र पत्र-समूह से हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला के एक दर्जन से अधिक पत्र निकालकर भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करा दिया। यूरोप के ‘डेली मेल ऐंड जनरल ट्रस्ट’ के संस्थापक के रूप में विश्वविख्यात नार्थ क्लिफ की भाँति वे भारत और विशेषकर हिंदी पत्रकारिता जगत् के नार्थ क्लिफ कहलाए।
हिंदी के स्वाध्यायी एवं लोकमर्मज्ञ मनीषी संपादकों में श्री कृष्णानंद गुप्त का विशिष्ट स्थान है। कृष्णानंद गुप्त ने मानव विज्ञान पर केंद्रित पत्रिका ‘लोकवार्त्ता’ को अपने उत्कृष्ट संपादकीय कौशल और दृष्टि संपन्नता से विद्वानों के बीच समादृत पत्रिका बना दिया। 1933 में उन्होंने ‘सुधा’ के ओरछा अंक का संपादन किया था, जो उनके टीकमगढ़ (म.प्र.) आकर ‘लोकवार्त्ता’ का संपादकीय दायित्व सँभालने का आधार बना। ढाई वर्षों तक गुप्तजी ने लीडर प्रेस इलाहाबाद से प्रकाशित ‘संगम’ का संपादन किया।
लोक कलाओं के मर्मज्ञ अयोध्या प्रसाद गुप्त ‘कुमुद’ बुंदेलखंड के साहित्य, इतिहास और संस्कृति के विशेषज्ञ के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इन विषयों पर उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। कई संस्थाओं ने उनकी सेवाओं का सम्मान किया है। मूलतः वे अधिवक्ता हैं, किंतु पत्रकारिता और शोध-अध्ययनों में उनकी गहरी अभिरुचि है और यही उनके व्यक्तित्व की विशिष्ट पहचान बन गई है।
‘कुमुद’ ने बुंदेलखंड की हिंदी पत्रकारिता के इतिहास पर शोध-अध्ययन और प्रलेखन किया है।