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‘‘डॉक्टर, मेरा नाम मृदुला है। लेकिन पहले मेरा एक अनुरोध है—कृपया किसी को मेरे यहाँ आने की बात मत बताइएगा।’’
‘‘चिंता मत कीजिए। मैं नहीं बताऊँगा।’’
‘‘डॉक्टर मुझे डिप्रेशन है। क्या मैं पूरी तरह ठीक हो जाऊँगी।’’
‘‘आपको कैसे पता कि आपको डिप्रेशन है?’’
‘‘सॉरी डॉक्टर, मैंने अपने-आप अंदाजा लगा लिया। मैंने अपने लक्षणों के बारे में इंटरनेट पर खोजा।’’
‘‘कोई बात नहीं। और हाँ, आप ठीक हो जाएँगी।’’
‘‘क्या मैं कुछ सवाल पूछ सकती हूँ?’’
‘‘बिलकुल। आप जितना बात करेंगी, उतना ही अच्छा होगा। इससे पता चलता है कि आपको जल्दी ठीक होना है।’’
‘‘डॉक्टर, मैं सबकुछ से थक चुकी हूँ।’’
‘‘मृदुला, खुद को रोकिए मत। आप चाहें तो रो सकती हैं। इससे तनाव कम होगा। कृपया यह ध्यान में रखिए कि आपको अपनी सामान्य अवस्था में आने में थोड़ा समय लग सकता है।’’
‘‘कितना समय, डॉक्टर?’’
—इसी पुस्तक से
समसामयिक समस्याओं, मानवीय संवेदनाओं और रिश्तों के ताने-बाने में बुना पठनीयता से भरपूर प्रसिद्ध लेखिका सुधा मूर्ति का मर्मस्पर्शी उपन्यास।
सुधा मूर्ति का जन्म सन् 1950 में उत्तरी कर्नाटक के शिग्गाँव में हुआ था। इन्होंने कंप्यूटर साइंस में एम.टेक. किया और अब इन्फोसिस फाउंडेशन की अध्यक्षा हैं। अंग्रेजी और कन्नड़ की एक बहुसर्जक लेखिका। इन्होंने उपन्यास, तकनीकी पुस्तकें, यात्रा-वृत्तांत, कहानी-संग्रह, कथेतर रचनाएँ तथा बच्चों के लिए अनेक पुस्तकें लिखी हैं।
इनकी अनेक पुस्तकों का भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और पूरे देश में उनकी 4 लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं। इन्हें सन् 2006 में साहित्य के लिए ‘आर.के. नारायण पुरस्कार’ और ‘पद्मश्री’ तथा 2011 में कन्नड़ साहित्य में उत्कृष्टता के लिए कर्नाटक सरकार द्वारा ‘अट्टिमब्बे पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है।