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आसुरी उन्माद से भरी इस जगती में मनुष्यता का पुलक नाद पहचानने का निरंतर अभ्यास साधना ही लेखनी का सच्चा तप होता है। कई साक्ष्य ऐसे होते हैं, जिनके कशाघात से चेतना तिलमिला उठती है।
इस देश के विद्या मंदिर इन दिनों किस दुर्वह योग से ग्रसित हैं, यह सबको पता है।...धन की प्रचंड चाह, अवैधता में आकंठ डूबे तथाकथित ज्ञानियों-विज्ञानियों का निरंकुश बुद्धिवादी आचार-व्यवहार, राजनीति की धूनी लगाकर ऊँचे आसन पर बैठने वाले संवेदनाशून्य प्राणियों का ऑक्टोपस जाल और ऐसे परिवेश में जीवन गंध खोजने का उपक्रम।
प्रस्तुत कहानियों में अनपेक्षित ऐश्वर्य बटोरने की कलंक-कथा का हिस्सा बननेवाली,भौतिक लिप्साओं के नागपाश में जकड़कर विषवमन करनेवाली दुःशील जीवात्माएँ चहुँ ओर फैली हैं। लेकिन इन कहानियों के शब्दों का अक्षय संसार वैष्णवी आस्था रखनेवाली उन तमाम संज्ञाओं के लिए है, जिनकी चेतना शत सहस्र सात्त्विक अनुभूतियों की सुगंध से आपूरित है,जिनके हृदय में चुने यंत्रणा के शूल ऋत् से जुड़ने की संजीवनी दें।
जन्म : 14 नवंबर, 1949 को डिहरी ऑन सोन में।
शिक्षा : स्नातक हिंदी ‘प्रतिष्ठा’ परीक्षा में विशिष्टता सहित प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान एवं स्वर्ण पदक प्राप्त, पी-एच.डी.।
रचना-संसार : ‘अरुंधती’, ‘अग्निपर्व’, ‘समाधान’, ‘बाँधो न नाव इस ठाँव’, ‘कनिष्ठा उँगली का पाप’, ‘कितने जनम वैदेही’, ‘कब आओगे महामना’, ‘कथा लोकनाथ की’ (उपन्यास); तीन उपन्यासकाएँ; ‘दंश’, ‘शेषगाथा’, ‘कासों कहों मैं दरदिया’, ‘मानुस तन’, ‘श्रेष्ठ आंचलिक कहानियाँ’, ‘कायांतरण’, ‘मृत्युगंध, जीवनगंध’, ‘भूमिकमल’ तथा ‘तर्पण’ (कहानी-संग्रह)।
सम्मान-पुरस्कार : ‘क्रौंचवध तथा अन्य कहानियाँ’ को भारतीय ज्ञानपीठ युवा कथा सम्मान, ‘लोकभूषण सम्मान’, ‘थाईलैंड पत्रकार दीर्घा सम्मान’, ‘राधाकृष्ण सम्मान’, ‘नई धारा रचना सम्मान’, ‘प्रसार भारती हिंदी सेवा सम्मान’, ‘हिंदुस्तानी प्रचार सभा सम्मान’, ‘हिंदी सेवा सम्मान’ एवं अन्य सम्मान। कला संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की सदस्य। केंद्रीय राजभाषा समिति की सदस्य, साहित्य अकादमी की सदस्य।