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एक साधारण व्यक्ति के जीवन से उभरा यह वृत्तांत अपरोक्ष रूप से हमें आईना ही नहीं दिखाता, अपितु जीवन में हमारी विभिन्न गतिविधियों की सार्थकता की ओर हमें सोचने को मजबूर करता है
बाहर क्या है घट में देख।
हर पथ का है पथिक एक॥
‘घट’ में भी हम क्या लख पाएँगे; यह भी निर्भर करता है कि हम किस घाट पर हैं। नीचे के घाट पर शून्य होंगे तो ही ऊपर के घाट में समाएँगे। शून्य मृत्यु से आध्यात्मिक लखाव का यह सातत्य बोध इस पुस्तक के पात्र ने किस प्रकार प्राप्त किया, कदाचित् आप पढ़ना चाहें।
डॉ. आनंद प्रकाश माहेश्वरी ने श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से स्नातक की डिग्री के उपरांत एम.बी.ए. पूर्ण किया। पुलिस सेवा में आने के बाद पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की।
डॉ. माहेश्वरी 1984 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अनुभवी अधिकारी हैं। उत्तर प्रदेश के विभिन्न महानगरों एवं विभागों में पुलिस प्रमुख के पद पर कार्य करने के साथ-साथ केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल तथा सीमा सुरक्षा बल में उन्होंने पूर्वोत्तर क्षेत्रों, कश्मीर, नक्सल प्रभावित राज्यों, सीमा सुरक्षा बल से जुड़े भू-भागों में भी प्रशंसनीय योगदान दिया है। पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो, आंतरिक सुरक्षा (गृह मंत्रालय) एवं केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल में शीर्षतम पद पर रहे हैं। अति विशिष्ट सेवाओं हेतु उन्हें राष्ट्रपति पदक, वीरता, आंतरिक सुरक्षा एवं कठिन सेवाओं हेतु अनेक पुलिस पदकों से अलंकृत किया गया है।
अपने अनुभवों के आधार पर वे हिंदी तथा अंग्रेजी भाषा में रचनात्मक लेखन करते रहे हैं।
इनसे anand.maheshwari21@gmail. com पर संपर्क किया जा सकता है।