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नारी हमारे समाज का एक ऐसा प्राणी है, जिसके पास जीवन से मृत्यु तक अपना घर नहीं होता । पैदा होती है तो पिता की छत के नीचे एक पराई अमानत की भांति या अतिथि के रूप में दिन गुजारती है, युवा होती है तो पति के घर एक सेविका की तरह जीवन व्यतीत करती है । बूढी होती है तो बेटे की छत के नीचे एक अनुपयोगी वस्तु की तरह मौत की घड़ियाँ गिनती रहती है ।
पिता का घर, पति का घर और अंत में बेटे का घर-ये तीनों घर, जहाँ जीवन के पहले क्षण में उसकी आँख खुली और अंतिम क्षण में उसने प्राण त्याग दिए कोई भी उसका अपना नहीं था । इन तीनों घरों से जुड़ी हुई उत्पीड़न, संत्रास और प्रताड़ना की जो कहानी है, यदि हम एक-एक करके उसकी परतें खोलना चाहें तो आँसुओं, आहों, पीड़ाओं और विपदाओं का ऐसा मरुस्थल सामने आएगा, जिसमें तपती हुई धूप, जलती हुई रेत, मुरझाई हुई आकांक्षाओं और पुरुषों द्वारा किए गए अत्याचारों के अतिरिक्त शायद कोई और चीज कम ही मिले ।
प्रश्न यह है कि नारी के जीवन में बदलते हुए इन घरों के इतिहास के पीछे वे क्या कारण हैं जिनसे उसे एक स्वतंत्र और सुखमय जीवन प्राप्त करने में निरंतर निराशा का सामना करना पड़ता है? नारी उत्पीड़न से संबंधित ये मार्मिक कहानियाँ हृदय को द्रवित करती हैं । पाठक इन्हें पढ़कर उन परिस्थितियों के संबंध में विचार करने को बाध्य हो जाएँगे जो कल भी घातक थीं और आज भी हैं ।
जन्म : सन् 1944, संभल ( उप्र.) ।
डॉ. अग्रवाल की पहली पुस्तक सन् 1964 में प्रकाशित हुई । तब से अनवरत साहित्य- साधना में रत आपके द्वारा लिखित एवं संपादित एक सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपने साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में लेखन-कार्य किया है । हिंदी गजल में आपकी सूक्ष्म और धारदार सोच को गंभीरता के साथ स्वीकार किया गया है । कहानी, एकांकी, व्यंग्य, ललित निबंध, कोश और बाल साहित्य के लेखन में संलग्न डॉ. अग्रवाल वर्तमान में वर्धमान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजनौर में हिंदी विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष हैं । हिंदी शोध तथा संदर्भ साहित्य की दृष्टि से प्रकाशित उनके विशिष्ट ग्रंथों-' शोध संदर्भ ' ' सूर साहित्य संदर्भ ', ' हिंदी साहित्यकार संदर्भ कोश '-को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है ।
पुरस्कार-सम्मान : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा व्यंग्य कृति ' बाबू झोलानाथ ' (1998) तथा ' राजनीति में गिरगिटवाद ' (2002) पुरस्कृत, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली द्वारा ' मानवाधिकार : दशा और दिशा ' ( 1999) पर प्रथम पुरस्कार, ' आओ अतीत में चलें ' पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ का ' सूर पुरस्कार ' एवं डॉ. रतनलाल शर्मा स्मृति ट्रस्ट द्वारा प्रथम पुरस्कार । अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन, उज्जैन द्वारा सहस्राब्दी सम्मान ( 2000); अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानोपाधियाँ प्रदत्त ।