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लोक और व्यक्ति के जीवन के अंतर्सबंधों की अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम होती हैं । मनुष्य ने जो कुछ सीखा है,जाना है या जिस प्रकार उसने जीवन जीने की विविध कलाएँ ग्रहण की हैं, वह प्रकृति के साहचर्य, सामंजस्य और समन्वय से ही संभव हो पाया है। नागा भाषा समूह में 20 से अधिक भाषारूप हैं, जिनका नामकरण उनकी जनजाति के आधार पर हुआ है। नागा लोककथाओं में पशु-पक्षी पर आधारित कथाओं को बहुलता है । इन लोककथाओं में ऐसा विश्वास किया जाता है कि बाघ के रूप में मनुष्य की आत्मा जंगलों में घूमती है। हॉर्नबिल नामक पक्षी पर आधारित तमाम प्रतीकात्मक कथाएँ भी इनमें मिलती हैं, जो मनुष्य और पक्षियों के आत्मीय संबंधों को बड़ी सुंदरता से प्रकट करती हैं । इसके अतिरिक्त नागा लोककथाओं में प्रकृति की अलौकिक शक्तियों से संबंधित तमाम कथाएँ प्राप्त होती हैं, जो प्रकृति की असीमित शक्ति की ओर संकेत करती हैं ।
नागा जनजाति के लोग प्रकृति के अनुरूप ही अत्यंत सहज और उल्लासप्रिय स्वभाव के होते हैं, जिनकी उत्सवप्रियता विविध रूपों में वर्षपर्यत प्रकट होती रहती है। विश्वास है, इन लोककथाओं के माध्यम से नागालैंड ही नहीं, पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र के प्रति एक विशेष आकर्षण पाठक के हृदय में उत्पन्न होगा ।
माधवेंद्र
जन्मस्थान : वाराणसी।
शिक्षा : एम.ए., पी-एच.डी.।
प्रकाशन : सौंदर्यबोध और हिंदी नवगीत, पूर्वोत्तर की सांस्कृतिक पहचान, चुकते नहीं हैं शब्द, काव्यबिंब और हिंदी नवगीत, खुब्लेइ शिबुन चीड़वन, तट पर प्रतीक्षा (अनुवाद), भारत में सामाजिक परिवर्तन (अनुवाद), विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में शोध-आलेखों आदि का प्रकाशन।
संप्रति : हिंदी विभाग ,पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग- 793022 (मेघालय)।
मो. : 9436163149
इ-मेल : mppandey@nehu.ac.in,
mppnehu@yahoo.co.in
श्रुति
जन्मस्थान : वाराणसी।
शिक्षा : एम.ए., एम.फिल., पी-एच.डी.।
प्रकाशन : निबंधकार पं. विद्यानिवास मिश्र, पूर्वोत्तर की सांस्कृतिक पहचान, तट पर प्रतीक्षा (अनुवाद), खासी साहित्य का इतिहास, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में शोध-आलेखों आदि का प्रकाशन।
संप्रति : अध्यक्ष, हिंदी विभाग, शिलांग कॉलेज, शिलांग-793003 (मेघालय)।
इ-मेल : spshillong@yahoo.co.in