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नैतिकता संपूर्ण मानवता की साझा पूँजी है। संसार की समस्त विचारधाराएँ, दार्शनिक चिंतन एवं साहित्यिक कृतियाँ इसके प्रभाव में आए बिना नहीं रह सकतीं। नैतिकता ही इनसानियत और हैवानियत के बीच की विभाजक रेखा है।
प्रस्तुत पुस्तक में नैतिक शिक्षा की उपादेयता पर गंभीरता से विचार किया गया है। परिवार, समुदाय, विद्यालय, महाविद्यालय इत्यादि की भूमिकाएँ और इनमें आपस में तालमेल कैसे रखा जाए—इनपर गहन विचार-मंथन किया गया है। इसमें वर्तमान की चुनौतियों को केंद्र में रखकर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के युग में नैतिक शिक्षा की प्रासंगिकता को भी रेखांकित किया गया है।
यह पुस्तक जहाँ विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के छात्रों के लिए उपयोगी है वहीं दैनिक जीवन में भी एक महत्त्वपूर्ण संदर्भ पुस्तक के रूप में उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगी, ऐसा विश्वास है।
जन्म : 16 मार्च, 1939
शिक्षा : एम.ए. ( राजनीति विज्ञान), एम.एड. ( रिसर्च स्कॉलर) ।
कार्यक्षेत्र : अध्यापन ।
सम्मान : राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी, जयपुर द्वारा रचनाधर्मिता, महत्वपूर्ण एवं दुर्लभ ज्ञान की पुस्तक लेखन पर सम्मान । राजस्थान सरकार द्वारा शिक्षक पुरस्कार । भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा पर्यावरण पुस्तक लेखन पर राष्ट्रीय स्तर का प्रथम पुरस्कार ।
राजस्थान सरकार पर्यावरण विभाग द्वारा पत्रवाचन पर राज्यस्तरीय सम्मान ।
राष्ट्रीय एवं प्रांतीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में सैकडों लेख प्रकाशित ।
कृतियाँ : जनसंख्या प्रदूषण और पर्यावरण, जनसंख्या विस्फोट और पर्यावरण, मानव और पर्यावरण, असंतुालित पर्यावरण और विश्व, पर्यावरण एवं महिलाएँ, पृथ्वी सौर कुकर कैसे?, प्रौढ़ एवं पर्यावरण, पर्यावरण शिक्षा, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पर्यावरण ।
संपर्क : कीकाणी व्यासों का चौक बीकानेर ।