₹300
नक्सलवाद किसी भी तरह की क्रांति नहीं, बल्कि आतंकवाद का ही नया प्रारूप है। बेशक यह लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद के इसलामी आतंकवाद से भिन्न है, लेकिन नक्सलवाद को सामाजिक-आर्थिक-कानूनी टकराव करार नहीं दिया जा सकता। यह एक ऐसी जमात है, जिसे मुगालता है कि बंदूक की नली से 2050 तक भारत की सत्ता पर कब्जा किया जा सकता है। इस पुस्तक ‘नक्सली आतंकवाद’ का उपसंहार भी यही है। इस निष्कर्ष तक पहुँचने में हमने करीब चार दशक खर्च कर दिए और नक्सलियों को हम अपने ही भ्रमित बंधु मानते रहे। नतीजतन आज आतंकवाद से भी विकराल और हिंसक चेहरा नक्सलवाद का है। देश का करीब एक तिहाई भाग और आठ राज्य नक्सलवाद से बेहद जख्मी और लहूलुहान हैं। नक्सलवाद पर यह कमोबेश पहला प्रयास है कि सरकारी हथियारबंद ऑपरेशन के साथ-साथ नक्सलियों की रणनीति को भी समेटा गया है। तमाम पहलुओं का तटस्थ विश्लेषण किया गया है। नक्सलवाद की पृष्ठभूमि को भी समझने की कोशिश की गई है। यूँ कहें कि नक्सलवाद पर दो वरिष्ठ पत्रकारों का अद्यतन (अपडेट) अध्ययन है। पुस्तक की सार्थकता इसी में है कि सुधी पाठक और शोधार्थी इसे संदर्भ ग्रंथ के रूप में ग्रहण कर सकते हैं।
________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
सूची-क्रम
एक और कुरुक्षेत्र के बीच — Pgs. ७
अध्याय १ : क्रांति से आतंकवाद तक — Pgs. १३
‘लाल आतंक’ के खिलाफ ऑपरेशन — Pgs. १५
७६ शहादतों का जंगल — Pgs. २६
हमले और विकास के बीच — Pgs. ३१
अपनी ही गली में गुरिल्ला हमला — Pgs. ३८
नक्सली मोरचे पर सेना क्यों नहीं? — Pgs. ४१
क्या नक्सलवाद राज्यों की ही समस्या...? — Pgs. ४४
दिल्ली की दहलीज तक — Pgs. ४७
संवाद के नाकाम सिलसिले — Pgs. ५२
नाकाम खुफिया के नतीजतन — Pgs. ५८
नक्सलवाद की ‘स्वात घाटी’ — Pgs. ६१
मसीहा नहीं, फासिस्ट — Pgs. ६६
बंदूक की नली से पैसे की सत्ता — Pgs. ६९
नक्सल का ‘बौद्धिक आतंक’ — Pgs. ७४
मानवाधिकारों के ठेकेदार — Pgs. ७८
साथ-साथ हैं नेता-नक्सली — Pgs. ८२
तेलंगाना : पुराने गढ़ को पाने की कवायद — Pgs. ८७
जमीन उसकी, जो उसे जोते — Pgs. ९२
पुलिस के नाम नक्सली फरमान — Pgs. ९६
‘आतंकवाद नहीं, युद्ध का सामना कर रहे हैं हम’—विश्वरंजन — Pgs. १०२
‘युद्ध लड़नेवाले बातचीत नहीं करते’— किशनजी — Pgs. ११०
सलवा जुडूम : नक्सली बनाम आदिवासी — Pgs. ११४
पिछड़ेपन का सच बयाँ करते ३३ जिले — Pgs. ११९
बैलेट ने नकारी बुलेट — Pgs. १२२
साथियों को खारिज करते बुजुर्ग नक्सली — Pgs. १२५
अध्याय २ : लहूलुहान ८ राज्य — Pgs. १२९
पश्चिम बंगाल : ‘जंगलमहल’ का अंतरराष्ट्रीय राजमार्ग — Pgs. १३१
झारखंड : नक्सलियों को शिबू का संरक्षण — Pgs. १३७
छत्तीसगढ़ : आतंक का ‘दंडकारण्य’ — Pgs. १४२
आंध्र प्रदेश : स्वतंत्र दंडकारण्य का सपना अधूरा — Pgs. १५१
उड़ीसा : क्रांति के मायने गाँजे की तस्करी — Pgs. १५७
महाराष्ट्र : ‘ऑपरेशन एरिया वन’ जारी है — Pgs. १६१
बिहार : सेना-सियासत में बँटे नक्सली — Pgs. १६६
मध्य प्रदेश : आतंक के २८ साल — Pgs. १७१
अध्याय ३ : पृष्ठभूमि और परंपरा — Pgs. १७३
नक्सलबाड़ी की चिनगारी — Pgs. १७५
चारु की क्रांति या आतंकवाद — Pgs. १७९
सशस्त्र क्रांति का सफरनामा — Pgs. १८५
सरकार के खिलाफ नक्सली रणनीति — Pgs. १८९
चारु की १०-सूत्रीय गुरिल्ला योजना — Pgs. १९५
अध्याय ४ : सूत्रधार और सेनापति — Pgs. २०१
नक्सलियों का ‘लादेन’ — Pgs. २०३
नक्सलवाद का प्रचार-पुरुष — Pgs. २०७
‘लालगढ़ का आतंक’ छत्रधर — Pgs. २१०
कोबाड की क्रांति और काजू — Pgs. २१२
विज्ञानी-बैंकर भी नक्सली हत्यारे — Pgs. २१४
नक्सली पहचान के विशेष ब्योरे — Pgs. २१७
जन्म : 9 जून, 1957 को कैथल (हरियाणा) में ।
शिक्षा : एम.ए., एम. फिल. (हिंदी) - स्वर्णपदक प्राप्त ।
शोध : ' साठोत्तर हिंदी कहानी के आंदोलन ' विषय पर शोध-प्रबंध ।
पत्रकारिता : पिछले सत्रह वर्षो से नियमित पत्रकारिता । पंजाब, हरियाणा और कश्मीर में जारी आतंकवादी गतिविधियों तथा दूसरे मुद्दों पर लगातार लेखन ।' जनसत्ता ', ' दैनिक हिंदुस्तान ' और ' माया ' (समाचार पत्रिका) में नौकरी की ।
' रोटीतंत्र ' (कहानी संग्रह) पर हरियाणा साहित्य अकादमी का प्रथम पुरस्कार ।
संप्रति : धर्मशाला और चंडीगढ़ से प्रकाशित हिंदी दैनिक ' दिव्य हिमाचल ' के दिल्ली ब्यूरो प्रमुख ।