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जगत वर्ष की पुस्तक 'नमो 7 रेसकोर्स की ओर' की भाँति यह पुस्तक भी 'कांग्रेस मुक्त भारत अवधारणा' को समिधा मात्र है । कांग्रेस मुक्त भारत से आशय राजनीतिक दल _ की समाप्ति से नहीं है | कांग्रेस मुक्त भारत" का विचार उस सोच के उन्मूलन का प्रतीक है, जो कांग्रेस की नस-नस में ही नहीं बल्कि अन्य बहुत से अधिष्ठानों, प्रतिष्ठानों, संस्थानों , समाजों, साहित्य, परंपराओं और व्यक्तियों को भी रंग-बेरंग कर चुका है । *धर्म-निरपेक्षता” जैसा 'अशब्द' इस अवर्ण सोच' का ही शिशु है | 'नमो 7 रेसकोर्स में प्रथम वर्ष' लिखते हुए मुझे गौरव भान अवश्य हुआ, किंतु इस सरकार से पिछले वर्ष जो जौरव-भाव मिला है, उसकी अपेक्षा शत गुणित गौरवान्वित होने की आशा से हम सभी ने इस सरकार को मत दिया है ।इस पुस्तक में गत वर्ष की समस्त घटनाओं का वर्णन नहीं है ।घटनाओं का उल्लेख उनके सुखद-दुखद व सफल-असफल होने के मापदंड से भी नहीं किया है, अपितु उनके दीर्घकालिक प्रभाव के आकलन के मानस से किया है।
राजनैतिक घटनाक्रम की समीक्षा सरल-सहज नहीं होती, क्योंकि उनमें सदैव एक रहस्य या छिपाव का भाव रहता है, किंतु नमो के प्रथम वर्ष की समीक्षा वस्तुतः एक सहज और सरल कार्य है, क्योंकि नमो में कुछ छुपा हुआ या अप्रकट है, ऐसा भाव उत्पन्न नहीं हो रहा । आभार श्रीयुत अरविंदजी मेनन (संगठन महामंत्री, भाजपा, म.प्र.) एवं श्रीयुत कैलाशजी विजयवर्गीय (मंत्री, नगरीय विकास एवं पर्यावरण मंत्री) के प्रति अत्यंत लघुतर से आग्रह पर उन्होंने इस पुस्तक की प्रस्तावना व आमुख लिखकर इस समिधा को साक्षित्व दिया ।—प्रवीण गुगनानी
प्रवीण ग़ुगनानी म.प्र. के आमला नामक ग्राम में जनमे, पले- बढ़े । वर्तमान में सतपुड़ा अंचल में बैतूल में निवासरत हैं । विभिन्न संगठनों के कार्य में लगे रहना और चिंतन-विमर्श में संलग्न रहना इनकी सतत प्रवृत्ति है । संप्रति क्षेत्र महामंत्री, अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, मध्यक्षेत्र के साथ अन्य बहुत से सामाजिक संगठनों में दायित्व निर्वहन कर रहे हैं । अपने परिवार, आजीविका और सांगठनिक कार्यों के मध्य कविता और सामयिक घटनाओं पर लेखन इनकी पहचान है । प्रवीणजी की यह लेखकीय पहचान मध्य के लगभग एक दशक तक संगठन के कार्यों और आजीविका के दबाव में रही, किंतु अब विगत ढाई वर्षों से प्रवीण गुगनानी एक कवि, राजनैतिक विश्लेषक, कॉलमनिस्ट, ब्लॉगर के रूप में अति सक्रिय हैं । देश के लगभग बीस राज्यों के हिंदी समाचार-पत्र, पत्रिकाओं में इनके आलेख सतत प्रकाशित होते हैं । प्रवीणजी के आलेख तीक्ष्ण, जागृत, संज्ञा और विज्ञा भाव के साथ राजनीतिज्ञों, प्रशासकों, मीडिया एवं सामान्य जन में जिज्ञासा के भ्रूण को पुष्ट करते हैं तथा उस भ्रूण को मत-निर्माण की दशा में जन्म लेने को बाध्य करते हैं । राष्ट्रवाद, छदम धर्म-निरपेक्षता, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदुत्व, प्राचीन भारत का गौरव व जागरण इनके लेखन के मुख्य विषय रहते हैं । |