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कहानियाँ केवल कहानियाँ ही नहीं होतीं; ये हमें हमारी संस्कृति और इतिहास से परिचित कराती हैं। बचपन में सभी ने अपने नाना-नानी से कहानियाँ तो अवश्य ही सुनी होंगी। कितना आनंद आता था जब हम जल्दी खाना खाकर नाना-नानी के कमरे में चल पड़ते और जब तक पलकें नींद से बोझिल नहीं हो जातीं; तब तक कहानी सनते ही रहते थे। कभी-कभी तो हम कहानी सुनते-सुनते नाना-नानी के बिस्तर पर ही सो जाते थे। आज भी जब उन दिनों को याद करते हैं तो मन में एक आनंद की लहर सी उठने लगती है। पुस्तक में कुछ चुनी हुई कहानियों को सरल भाषा तथा चित्रों के साथ संगृहीत किया गया है; जो कहीं-न-कहीं हमें पेरणा देती हैं तथा हमें हमारी शिक्षा और संस्कृति का बोध कराती हैं।
आइए; फिल्मों तथा सीरियलों से थोड़ा समय निकालकर अपनी संस्कृति और शिक्षा से भी परिचय किया जाए; जिसका सबसे अच्छा और सरल साधन हमारी ये अनमोल पुस्तकें हैं; जो हमें स्वयं से परिचित भी कराती हैं।
जन्म : 18 नवंबर, लखनऊ (उ.प्र.)।
प्रकाशन : ‘इंद्रधनुष अनुभूति के’, ‘झाँकता गुलमोहर’, ‘नई सदी के हस्ताक्षर’, ‘कहने को बहुत कुछ था’, ‘ठहरा हुआ सच’ (कहानी-संग्रह)।
सम्मान-पुरस्कार : ‘महादेवी वर्मा स्मृति सम्मान’, ‘जनाब अब्दुल खालिक बच्चा सम्मान’, ‘मानव सेवा सम्मान’, ‘वैश्य गौर सम्मान’, ‘भारतीय बाल कल्याण साहित्य सम्मान’, ‘पांचाल महिला रत्न’, ‘शहीद महिला रत्न’ के अलावा अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
संप्रति : अध्यक्ष (प्रदेश शाखा), नारायणी साहित्य एकेडमी, नई दिल्ली; संस्थापक महासचिव, सृजन जनकल्याण सेवा समिति, बरेली।
वस्त्र मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति की सदस्य।