Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Narad Muni Ki Aatmkatha   

₹350

In stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Laxminarayan Garg
Features
  • ISBN : 9789386054913
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : Ist
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Laxminarayan Garg
  • 9789386054913
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • Ist
  • 2018
  • 184
  • Hard Cover

Description

‘नारद मुनि की आत्मकथा’ पुस्तक में कुल मिलाकर छोटे-बड़े ऐसे छियालीस वृंत हैं, जो देवर्षि नारद के अपने मुखार-विंद से निसृत हुए और जिन्हें महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वेदव्यास एवं गोस्वामी तुलसीदास ने पौराणिक ग्रंथों में विभिन्न स्थलों पर प्रस्तुत किया है। इन आयानों से पता चलता है कि नारदजी की कथनी-करनी न केवल भेद रहित है, बल्कि सर्वत्र सात्विक और मधुर है। वे एक ओर लोक-कल्याण के लिए तत्पर रहते हैं, तो दूसरी ओर दक्ष-पुत्रों, वेदव्यास, वाल्मीकि, राजा बलि, बालक ध्रुव, दैत्य पत्नी कयाधू का हित साधन करते हैं और जहाँ आवश्यक समझते हैं, वहाँ ज्ञान देकर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं। 
इन सब नेक और शुभ कर्मों को करते हुए भी वे राम और कृष्ण एवं विष्णु रूप अपने ‘नारायण’ को कभी विस्मृत नहीं करते। बहुआयामी सकारात्मक व्यतित्व वाले देवर्षि नारद, बिना भेदभाव के सभी से मधुर व्यवहार करते हुए व्यष्टि और समष्टि के कल्याण हेतु तत्पर रहते हैं। इसीलिए या देव, दानव और राक्षस, तो या मनुष्य, उनका आदर और सम्मान करते हैं। ऐसे दुर्लभ गुण एवं विशेषताओं वाले नारद मुनि श्रीकृष्ण के लिए भी स्तुत्य हैं।

__________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

अनुक्रम  
भूमिका—7  
श्रीकृष्ण द्वारा देवर्षि नारद की स्तुति—9 23. पुंडरीक का संदेह-निवारण—90
नारद भक्ति-सूत्र : सार—11 24. मातलि की कन्या के लिए वर की खोज—93
1. जन्म, पतन और पुनरुत्थान—17 25. राजा सुहोत्र का कद छोटा किया—98
2. हवन करते हाथ जले—19 26. इंद्रप्रस्थ में पांडवों का हित-चिंतन—100
3. महर्षि अत्रि की शंका—22 27. श्री हरि ने बढ़ाया मेरा मान—106
4. वेद व्यास की मिटाई उदासी—25 28. देवताओं ने बनाई थी कर्ण-जन्म की योजना—108
5. वाल्मीकि को राम का परिचय—27 29. कृष्ण के उपचार के लिए विचित्र औषधि!—113
6. भगवान् की शब्दमय मूर्ति—32 30. गालव मुनि को श्रेय (आत्म कल्याण) का उपदेश—116
7. पार्वती को बताया शिव-प्राप्ति का उपाय—36 31. कौरवों ने सांब को बंदी बना लिया—119
8. इंद्र और बृहस्पति की मनमानी पर अंकुश—39 32. देवलोक का रहस्योद्घाटन—122
9. नारायण के विश्वरूप के दर्शन—46 33. निंदा करो या स्तुति, श्रीहरि को भूलो मत!—124
10. शुकदेव को बनाया : मोक्ष-मार्ग का पथिक—49 34. गंधर्व चित्रसेन की रक्षा—129
11. प्राचीन बर्हि की भर्त्सना—52 35. दुर्योधन के कान पर जूँ नहीं रेंगी—132
12. बालक ध्रुव को बनाया—भगवद्भक्त—55 36. मेरे संगीत-ज्ञान पर पानी फिर गया—137
13. गर्भवती कयाधू की रक्षा—57 37. कृष्ण की सुलझाई उलझन—139
14. विष्णु को शाप देकर पछताया—59 38. कुबेर-पुत्रों को शाप—143
15. चित्रकेतु के मृत-पुत्र का आह्वान —63 39. कृष्ण का गृहस्थ रूप—145
16. कृष्ण कैसे कृतार्थ होते हैं?—65 40. वसुदेव को बताया परम पद पाने का उपाय —148
17. इंद्र-पुत्र जयंत को नेक सलाह—67 41. उद्धव के भ्रम का नाश—156
18. यमलोक में रावण हुआ लहू-लुहान—69 42. कृष्ण का उपदेश उद्धव से सुना—162
19. भगवन्! मुझे विवाह क्यों नहीं करने दिया?—74 43. धृतराष्ट्र की तपस्या में रुचि बढ़ाई—170
20. गरुड़ फँस गया माया के फंदे में—77 44. पांडवों को मृत्यु की सूचना दी—172
21. राजा सृंजय के मृत-पुत्र को जीवन-दान—79 45. युधिष्ठिर को स्वर्ग में उपदेश—174
22. समंग से भेंट—88 46. इंद्र को सुनाई आश्चर्यजनक घटना—176

The Author

Laxminarayan Garg

जन्म : 1938, अजमेर (राजस्थान)।
शिक्षा : एम.ए., पी.एचडी., पी.जी. डिप्लोमा अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान, पी.जी. डिप्लोमा पत्रकारिता।
प्रकाशन : ‘हिंदी कथा साहित्य में इतिहास’ (आलोचना), ‘अनुकंपा’ , ‘सिरफिरा’, ‘मनमाने के रिश्ते’, ‘अमर्ष’ (उपन्यास), ‘कथा के सात रंग’, (कहानी), ‘हिंदी शब्दप्रयोग कोश’, ‘परमाणु से नैनोप्रौद्योगिकी तक’, ‘शिक्षार्थी हिंदी प्रयोग कोश’, ‘महाभारत कोश’, ‘अंत्याक्षरी कोश’, ‘मनुष्य  आंतरिक शक्तियों का नियामक’, ‘दूरसंचार कथा’, ‘आयुर्वेद विभिन्न पहलू’, ‘आज का अंतरिक्ष’ (अनुवाद), ‘फलित ज्योतिष : सार्थक या निरर्थक’, ‘हृठ्ठष्द्ग श्चशठ्ठ न क्चद्यह्वद्ग रूशशठ्ठ’ (प्रकाशनाधीन)।
संप्रति : केंद्रीय हिंदी निदेशालय के उपनिदेशक पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात् लेखन, संपादन और अनुवाद कार्य में संलग्न।

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW