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आज के जमाने में जो स्त्रियाँ दुराचार का शिकार होती हैं, उनका क्या अंत होता है? उनके सम्मुख देवी अहिल्या जैसी पत्नी तथा ऋषि गौतम जैसे पति का आदर्श तो होता नहीं है। पति व उनका परिवार उन्हें दुत्कार देता है। ऐसी स्थिति में वे समाज का सामना नहीं कर पातीं। आत्मग्लानि की भाँति आत्मसम्मान व आत्मविश्वास पाने के लिए स्वयं को दंड देने अथवा तपाने का तो विचार ही उनमें नहीं आता। वे या तो सारी उम्र अपमानजनक जीवन जीने पर विवश होती हैं अथवा आत्महत्या कर लेती हैं। एक दुराचारी को दंड, पीडि़त नारी का प्रायश्चित्त द्वारा शुद्धीकरण तथा पति द्वारा क्षमादान की उदारता का एक अनुकरणीय उदाहरण है यह कथा। स्त्री के सम्मान, उसकी प्रतिष्ठा और मर्यादा को पुनर्स्थापित करता सशक्त उपन्यास।
डॉ. ओम प्रकाश पाहूजा ने भारत के प्रसिद्ध शिक्षा केंद्रों से विभिन्न उपाधियाँ प्राप्त कीं—हिंदू महाविद्यालय, सोनीपत से स्नातक; होल्कर विज्ञान महाविद्यालय, इंदौर से स्नातकोत्तर तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के भौतिकी तथा खगोल-भौतिकी विभाग से विद्या-वाचस्पति की उपाधि।
सन् 1972 से 2007 तक राजधानी महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय) के भौतिकी तथा इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग में अध्यापन कार्य करते रहे। इससे पूर्व हिंदू महाविद्यालय, सोनीपत में छह वर्षों तक भौतिकी के प्राध्यापक रहे।
अध्यापन तथा सामाजिक कार्य इनके जीवन का उद्देश्य है। इनका सामाजिक जीवन स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद तथा महर्षि अरविंद जैसे दिव्य पुरुषों तथा दार्शनिकों से प्रेरित है। अध्यापन काल में नाभिकीय-भौतिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स तथा कंप्यूटर के मौलिक सिद्धांत आदि उनके रुचिकर विषय रहे हैं। ‘Solid State Physics’; ‘India : A Nuclear Weapon State’; ‘India’s Nuclear Might’; ‘नाभिकीय अस्त्र-संपन्न भारत’; ‘वयम् हिंदवः’ उनकी पूर्व लिखित पुस्तकें हैं।