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हर दौर में ऐसे लेखक हुए हैं, जो अपनी मुख्य रचनाभूमि के समांतर अन्य विधाओं के शिल्प-अनुशासन में भी सृजनशील रहे हैं। बहुमुखी रचनाशीलता के ऐसे शब्दकारों की पंक्ति लंबी है। अज्ञेय से लेकर श्रीकांत वर्मा और आज तक यह क्रम थमा नहीं। विद्याभूषण इसी रास्ते पर चलते रहे। कविता को अभिव्यक्ति के केंद्र में रखनेवाले इस रचनाकार के खाते में कई अन्य विधाओं की कृतियाँ भी शामिल हैं। ‘नायाब नर्सरी’ उनका तीसरा कहानी संग्रह है। इस संग्रह की कहानियों ने पत्रिकाओं और पाठकों के बीच अपनी पहचान बनाई है।
इन कहानियों में कुछ वैसी ही विविधता सुलभ है जैसी नर्सरी के वातावरण से सहज आभासित होती है। उनमें व्यक्ति और समाज के विविध रंग और छवियाँ सहेजी गई हैं। जैसे ‘बेड नंबर सात’, ‘तुमि समय दिले ना’ और ‘एक गुनाह बेलज्जत’ जैसी कहानियों में स्त्री और पुरुष के अंतर्संबंधों के पेच परत-दर-परत खुलते हैं। ‘इस्तीफा’ और ‘दादी अम्मा का चश्मा’ में अलग आयु-वर्ग की महिलाओं के असम अंतरंग का रोचक उद्घाटन हुआ है। ‘आत्महंता’, ‘दिशांतर’ और ‘तपन गुहा का ताप’—इन तीनों कहानियों में बड़े फलक की कथा को कहानी के संक्षिप्त कलेवर में मर्मस्पर्शी उपचार मिला है। शेष चार कहानियों में मध्यवर्गीय जीवन प्रसंगों का ब्योरेवार चित्रण है। ‘तराजू और बाट’ में मूल्यमानकों के विघटन का अंकन हुआ है, ‘पतंगों की उड़ान’ में सामाजिक विषमता चित्रित है और ‘जाएँ तो जाएँ कहाँ’ में अल्पसंख्यक वर्ग के संत्रास की पीड़ा व्यक्त हुई है। समकालीन जीवन-शैली की विसंगतियों को यक्ष प्रश्न जैसा अर्थ-विस्तार देते हुए ‘नायाब नर्सरी’ शीर्षक कहानी एक अनूठी मिसाल बन गई है।
जन्म 5 सितंबर,1940 को मध्य बिहार के गया शहर में। किशोर वय से आज तक झारखंड प्रदेश में क्रियाशील।
शिक्षा-दीक्षा पी-एच.डी. तक। अध्यापकी, किरानीगिरी, व्यवसाय, खेती-बारी, पत्रकारिता, समाज, साहित्य और संस्कृति-क्षेत्र में कई दिशाखोजी पड़ावों के बाद अब सृजन और विचार की शब्द-यात्रा।
क्रमश: ‘अभिज्ञान’, ‘प्रसंग’ (अनियतकालीन पत्रिकाएँ), ‘देशप्राण’, ‘झारखंड जागरण’ (दैनिक) के संपादकीय विभाग से थोड़े-थोड़े समय के लिए संयुक्त।
‘अतिपूर्वा’, ‘सीढि़यों पर धूप’, ‘मन एक जंगल है’, ‘ईंधन चुनते हुए’, ‘आग के आस-पास’, ‘ईंधन और आग के बीच’ (कविता संग्रह); ‘कोरस’, ‘कोरसवाली गली’, ‘नायाब नर्सरी’ (कहानी संग्रह); ‘वनस्थली के कथापुरुष’ (आलोचना), ‘झारखंड : समाज, संस्कृति और विकास’ (समाज-दर्शन), ‘कविताएँ सातवें दशक की’, ‘प्रपंच’ (संपादित) आदि कुल बारह पुस्तकें प्रकाशित।
लगभग दर्जन भर पुस्तकों का अनाम संपादन। पत्र-पत्रिकाओं में विविध विषयों और विधाओं में लेखन।