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संविधान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हर कथन उनके सृजनशील चिंतन-मनन का द्योतक है। संविधान के शब्दों और अनुच्छेदों में परंपरागत वैधानिक शब्दावली है, वैसे ही जैसे कि तर्कबद्ध सूत्र होते हैं। उसे वे ही समझ सकते हैं, जिनकी उस शब्दावली में गति होती है। इसी अर्थ में यह बात एक मुहावरे के रूप में चल पड़ी थी कि संविधान तो वकीलों का स्वर्ग है। इससे यह बात निकलती है कि संविधान को वे ही समझ सकेंगे, जो कानून के जानकार हैं। इस कारण भी संविधान से नागरिक की एक तरह की दूरी बनी हुई थी। संविधान और नागरिक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सेतु का निर्माण किया है। एक छोर पर नागरिक था, तो दूसरे छोर पर संविधान। उसे उनके बनाए सेतु ने जोड़ दिया है।
...भारत के संविधान के बारे में हर नागरिक को जिज्ञासा भाव से भरने के लिए जो जानना चाहिए, वह इस पुस्तक में है। इसलिए यह आशा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इन भाषणों से संविधान के बारे में उनके प्रति बनाए गए भ्रम का निवारण अवश्य होगा।
गुजरात के मेहसाना जिले के वडनगर में जनमे श्री मोदी राजनीतिशास्त्र में एम.ए. हैं। स्वयंसेवक के रूप में संघ संस्कार एवं संगठन वृत्ति के साथ अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर रहते हुए1999 में वे भाजपा के अखिल भारतीय महामंत्री बने। सोमनाथ-अयोध्या रथयात्रा हो या कन्याकुमारी से कश्मीर की एकता यात्रा, उनकी संगठन शक्ति के उच्च कोटि के उदाहरण हैं। गुजरात का नवनिर्माण आंदोलन हो या आपातकाल के विरुद्ध भूमिगत संघर्ष, प्रश्न सामाजिक न्याय का हो या किसानों के अधिकार का, उनका संघर्षशील व्यक्तित्व सदैव आगे रहा है।
ज्ञान-विज्ञान के नए-नए विषयों को जानना उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति है। उन्होंने जीवन-विकास में परिभ्रमण को महत्त्वपूर्ण मानते हुए विश्व के अनेक देशों का भ्रमण कर बहुत कुछ ज्ञानार्जन किया है।
अक्तूबर 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में पद सँभालने के बाद उन्होंने प्रांत के चहुँमुखी विकास हेतु अनेक योजनाएँ प्रारंभ कीं—समरस ग्राम योजना, विद्या भारती, कन्या केलवानी योजना, आदि। स्वामी विवेकानंद के सिद्धांत ‘चरैवेति-चरैवेति’ पर अमल करते हुए निरंतर विकास कार्यों में जुटे श्री मोदी को बीबीसी तथा बिजनेस स्टैंडर्ड ने ‘गुजरात का इक्कीसवीं सदी का पुरुष’ बताया है।
आज भारत में ‘सुशासन’ की गहन चर्चा हो रही है। मुख्यमंत्री के रूप में कम समय में ही श्रेष्ठ प्रशासक और सुशासक के रूप में भारत की प्रथम पंक्ति के नेताओं में उनका नाम लिया जाता है।