₹400
Nayi Kavita : Swaroop Aur Pravrittiyan न ई कविता अब कोई नई बात नहीं रह गई है। इस पर रचनाओं और आलोचनाओं का अंबार-सा लग गया है। यह क्रम हिंदी-जगत् में बढ़ता ही चला जा रहा है। इसके विकास-क्रम में इसकी अनेक धाराएँ भी फूटी हैं, लेकिन नई कविता की जो मूल गुणधर्मिता है, वह सबमें प्रवाहित दिखती है। तात्पर्य यह कि छायावादी युग के बाद से हिंदी-काव्य ने जो मोड़ लिया, वह अब तक अपने प्रयोगों एवं प्रयासों में विशिष्ट स्वरूप ग्रहण कर चुका है। फिर भी यह विधा इतनी नवीन, हलचलों से युक्त एवं भारतीयता-अभारतीयता के प्रश्नों से घिरी है कि इसका वास्तविक स्वरूप स्थिर कर पाना कठिन है। इसकी वास्तविक प्रकृति क्या है और इसकी मूलभूत प्रवृत्तियाँ कौन सी हैं? यह स्थिर करना एक दुरूह कार्य है। प्रस्तुत पुस्तक इसी दिशा में एक प्रयास है।
_____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
विषय-सूची
भूमिका — Pg. 5
प्रथम अध्याय : विषय का स्वरूप और सीमा — Pg. 11-45
(क) नामकरण की सार्थकता
नई कविता की विशेषताएँ : अर्थ की लय, विज्ञान का दबाव, विराट् सा की अनुभूति का इनकार, राजनीति से जुड़ाव, प्रेम और काम का यथावत् स्वीकार, व्यंग्य के तीखे स्वर, आधुनिकता बोध, वाद की संकीर्णताओं का विरोध, क्षणवाद, यथार्थ परिस्थितियों की जमीन और युग जीवन से जुड़ाव, सही और तटस्थ अभिव्यति, लोक-परंपरा, बौद्धिकता, असंपृति, परायापन या अजनबीपन (एलिएनेशन), रोमानी मूल्य
शिल्प का प्रयोग : भाषा, किसी एक पद्धति में बद्ध भाषा नहीं, शद- चयन विभिन्न भाषाओं से, लोकभाषा के तव, मुहावरे, दुरूहता, सपाटबयानी, प्रतीक, बिंब, लय, तुक और छंद से मुति, पुराने छंदों को तोड़कर नए छंदों का निर्माण तथा विभिन्न देशी-विदेशी छंद, स्वीकार, अस्वीकार के पश्चात् पुन: प्राचीनता के प्रति आकर्षण, गीतात्मकता की प्रवृत्ति प्रबंधात्मकता।
(ख) नई कविता का काल-विभाजन
(ग) नई कविता की पृष्ठभूमि : ऐतिहासिक, समाजिक और राजनीतिक, स्वतंत्रता के बाद, रियासतों का एकीकरण, सर्वस्वीकृत लोक-नेतृत्व की समाप्ति, अशांति और आर्थिक परेशानियाँ, पंचवर्षीय योजनाएँ, समाजवाद का लक्ष्य, समाजवाद का मोह भंग, लोहिया का व्यतित्व, लालबहादुर शास्त्री का व्यतित्व, इंदिरा गांधी का व्यतित्व, दूसरी आजादी का खोखलापन, आयोग स्थापना और प्रेस की आजादी, चरण सिंह की सफलता और इंदिरा की चाल, जनोन्मुखता का अभाव, इन सभी परिस्थितियों का नई कविता पर प्रभाव, अनेक वर्गों का जन्म तथा नई कविता द्वारा उनकी अभिव्यति, कुछ अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियाँ — Pg.
विदेशी नीति-निर्धारण की समस्या, समाजवाद और समाजवाद विरोधी विचारधाराओं में शीतयुद्ध, भारत की असुरक्षात्मक स्थिति, तटस्थता की नीति और निर्गुट आंदोलन की अध्यक्षता, अमरीका और पाकिस्तान का सैनिक गठबंधन, पंचशील के सिद्धांतों की घोषणा, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि।
(घ) प्रस्तुत शोधकार्य की समीचीनता
द्वितीय अध्याय : नई कविता की दिशाएँ — Pg. 46-78
(क) भावगत : 1. अपरंपरित होने का गौरव, 2. रूढ़ियों से विद्रोह की दिशा, 3. व्यतिवादिता और यांत्रिकता की दिशा 4. नगर की ओर उन्मुख होने की दिशा, 5.मशीन एवं मनुष्य के बीच संघर्ष की दिशा, 6.विसंगतियों का चित्रण अधिक, 7.समसामयिक चेतना के प्रति जागरूकता की दिशा, 8.भारतीय नारी की स्वतंत्रता एवं स्वाया के लिए संघर्ष की दिशा, 9.देश की बीहड़ परिस्थितियों से प्रभावित होने की दिशा, 10.विदेशी आंदोलनों के प्रति सजगता की दिशा, 11.क्षणिकता की दिशा, 12.पाठकों को उनकी स्वतंत्रता वापस करने की दिशा, 13.अनगढ़ता और अलगाव की दिशा, 14.क्षण और वैयतिकता के प्राधान्य की दिशा, 15.प्रेरणा-स्रोतों का स्वीकार, 16. विभिन्न वादों का सम्मिश्रण।
(ख) शिल्पगत : प्रतीकवादिता की दिशा, बिंबात्मकता की दिशा, मिथकीयता, फैंतासी, स्वेच्छाचारी व्याकरणिक प्रयोग, दुरूहता और असंप्रेषणीयता, सपाटबयानी की दिशा, लोकोतियों और मुहावरों की दिशा, निष्कर्ष।
तृतीय अध्याय : नई कविता की प्रवृयिँ — Pg. 79-128
मानवीय साक्षात्कार, राजनीति, इतिहास और पौराणिकता की प्रवृत्ति व्यंग्य की प्रवृत्ति प्रकृति-चित्रण की प्रवृत्ति प्रेम और काम की अभिव्यति की प्रवृत्ति विज्ञान-बोध की प्रवृत्ति युद्ध और शांति पर विचार की प्रवृत्ति निष्कर्ष।
चतुर्थ अध्याय : नई कविता के कवि एवं उनकी कृतियाँ — Pg. 129-165
सप्तकी कवि — Pg. गजानन माधव मुतिबोध, गिरिजा कुमार माथुर, अज्ञेय। दूसरा सप्तक — Pg. भवानी प्रसाद मिश्र, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती, कुँवर नारायण, विजयदेव नारायण साही, सर्वेश्वर दयाल ससेना, राजकुमार कुंभज, स्वदेश भारती, राजेंद्र किशोर।
सप्तकेतर कवि — Pg. डॉ. जगदीश गुप्त, लक्ष्मीकांत वर्मा, श्रीकांत वर्मा, धूमिल, लीलाधर जगूड़ी, नलिन विलोचन शर्मा, केसरी कुमार, नरेश, कैलाश वाजपेयी, राजीव ससेना, मोहन अवस्थी, कुमार विमल, अजित कुमार निष्कर्ष।
पंचम अध्याय : नई कविता का भविष्य — Pg. 166-186
गजलों की ओर झुकाव, प्रबंधात्मकता, मिट्टी, पानी और परिवेश के प्रति कृतज्ञता, बृहार सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ, जीवन-विसंगति और व्यंग्य के स्वर, उर्दू से शति ग्रहण, पुरायान और नई दृष्टि, संपादित संकलन, पत्र-पत्रिकाएँ, निष्कर्ष
षष्ठ अध्याय : नई कविता का मूल्यांकन — Pg. 187-209
सप्तम अध्याय : उपसंहार — Pg. 210-214
सहायक-ग्रंथों की सूची — Pg. 215-216
शिक्षा : एम.ए., पी-एच.डी. (पटना विश्वविद्यालय)।
रचनाएँ : ‘नई कविता की चिंतन भूमि’।
अनुभव : प्रोजेक्ट एसोशिएट, एन.सी.ई.आर.टी., नई दिल्ली। व्याख्याता, सत्यवतीकॉलेज (सांध्य), दिल्लीविश्वविद्यालय (1994-1996)।
संप्रति : एसोशिएट प्रोफेसर, स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, पटना (मगध विश्वविद्यालय)।