₹250
हरनाथ : जिन दिनों प्रकृति पर विजय पा जाने की धारा हमारे प्राचीन समाज का मुख्य उद्देश्य रही उन दिनों उज्जैन का ज्योतिष और काव्य, तक्षशिला का आयुर्वेद और शल्य-शास्त्र, मथुरा का वास्तु और स्थापत्य, दक्षिण का संगीत और नृत्य, काशी का दर्शन आदि संसार भर में प्रसिद्ध हो - गए-जनता ने बहुत कुछ पाया; परंतु जब धारा केवल मन पर विजय पाने के लिए बह पड़ी तब योग्य और सशक्त लोग त्याग- तपस्या के मोह में घर छोड़कर कंदराओं में जाने लगे, जनता को निरीह बन जाने के लिए और प्रकृति के दिए कष्टों और दुःखों से भाग पड़ने के लिए उपदेश देने लगे । उधर रावों, राजाओं और सम्राटों की बन पड़ी । अधिकांश जनता को अचेत-सा करके त्यागी और राजा-दोनों ईश्वर के अवतार बन बैठे । जगह-जगह छुटभैयों ने अपने- अपने राज्य बनाए जरा-जरा सी बात पर परस्पर लड़े और जब वे लोग देश पर चढ़ दौड़े, जिन्होंने प्रकृति पर विजय पाने के? अधिक अभ्यास किए थे!, तब सिटपिटा गए और लड़ते-मरते-सिसकते दब गए ।
काशीनाथ : आप बाहर के पौधों को उखाड़-उखाड़कर यहाँ की भूमि में लगाने के घोर पक्षपाती हैं । परंतु याद रखिए कि वे ' बाहर के पौधे यहाँ कभी नहीं पनप सकेंगे ।, यहाँ की प्राचीन त्याग-प्रधान संस्कृति फिर उठेगी औरन केवल इस देश को बचाएगी, बल्कि संसार भर के मानव समाज की रक्षा में हाथ बँटाएगी । इसी पुस्तक से,
प्रस्तुत नाटक में एक ओर आधुनिक एवं प्राचीन संस्कृति का टकराव दृष्टिगत होता है तो दूसरी ओर व्यापक एवं सार्थक चिंतन - भी पढ़ने को मिलता है । निश्चय ही प्रस्तुत : पुस्तक को पढ़कर पाठक भारत की - अर्वाचीन व प्राचीन संस्कृति को लेकर अपना दृष्टिकोण व्यापक कर सकेंगे ।
मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।
ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ' ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ', बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्टि प्रदान की ।
आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ' पद्म भूषण ' की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' से भी सम्मानित किया गया तथा ' झाँसी की रानी ' पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ' झाँसी की रानी ' तथा ' मृगनयनी ' का फिल्मांकन भी हो चुका है ।