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सुभाष को क था कि वे और जवाहरलाल साथ मिलकर इतिहास बना सकते हैं, मगर जवाहरलाल अपना भविष्य गांधी के बगैर नहीं देख पा रहे थे। यही इन दोनों के संबंधों के द्वंद्व का सीमा-बिंदु था। एक व्यक्ति, जिसके लिए भारत की आजादी से अधिक और कुछ मायने नहीं रखता था और दूसरा, जिसने अपने देश की आजादी को अपने हृदय में सँजोए रखा, मगर इसके लिए अपने पराक्रमपूर्ण प्रयास को अन्य चीजों से भी संबंधित रखा और कभी-कभी तो द्वंद्व-युक्त निष्ठा से भी। सुभाष और जवाहरलाल की मित्रता में लक्ष्यों की प्रतिद्वंद्विता की इस दरार ने एक तनाव उत्पन्न कर दिया और उनके जीवन का कभी भी मिलन न हो सका|.
रुद्रांक्षु मुखर्जी एक इतिहासविद् व पत्रकार हैं और ' द टेलीग्राफ' का संपादन कर रहे हैं। वह बहुत से शैक्षणिक पदों पर रहे; अन्य स्थानों के अतिरिक्त कलकत्ता, प्रिंसटन, मानचेस्टर विश्वविद्यालयों में भी अध्यापन किया। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें ' मंगल पांडे' एवं ' ब्रेव माटयिर' प्रमुख हैं। ' एक्सिडेंटल हीरो' एवं ' इंडिया देन ऐंड नाउ' उनकी नवीनतम कृतियाँ हैं।
संप्रति ' पेंगुइन गांधी रीडर' के संपादक हैं ।