₹200
अगले दिन हम सुबह ही वर्माजी के घर जा पहुँचे। वहाँ बड़ी भीड़ थी। प्रायः सबके हाथ में कुछ कागज भी थे। किसी को गली की समस्या थी, तो किसी को बिजली के खंभे की। किसी को अपने या अपने किसी रिश्तेदार के लिए नौकरी चाहिए थी, तो किसी को दुकान। वर्माजी सबसे बड़ी चतुराई से निबट रहे थे।
कभी वे गरम हो जाते, तो कभी नरम। कभी किसी के साथ वे अंदर जाकर गुपचुप बात करते, तो किसी को सबके सामने हड़काने लगते। शर्माजी से उन्होंने चाय का आग्रह किया; पर मुझे पानी तक को नहीं पूछा। उनको बार-बार रंग बदलता देख मैं समझ गया कि जरूर इनके डी.एन.ए. में गिरगिट के कुछ अंश हैं।
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जरा सोचिए, अभी तो ‘मेरा भारत महान्’ विकासशील देश है; पर जब यह पूर्ण विकसित हो जाएगा, तब सड़क पर झाड़ू लगाते सफाईकर्मी, खेत में आधी धोती पहनकर हल चलाते किसान, फटी लँगोटीवाले भिखारी सब टाईवाले ही होंगे। घरों में झाड़ू-पोंछा करनेवाली महिलाएँ और गलियों में आवाज लगाकर फल-सब्जी बेचनेवाले इसे लगाकर आएँगे।
टाईवाले चालक के रिक्शा में बैठकर लगेगा मानो पूरा ब्रिटेन आपकी गुलामी कर रहा है। दूधवाला अपने साथ-साथ भैंस के गले में भी इसे लटका देगा। इससे दूध में पर्याप्त पानी होने पर भी दो-चार रुपए फालतू देते हुए आपको कष्ट नहीं होगा। —इसी संग्रह से
वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक विद्रूपताओं पर करारा प्रहार करनेवाली चुटीली व्यंग्य रचनाओं का संकलन।
विजय कुमार 1991 बैच के भारतीय रक्षा लेखा सेवा (आई.डी.ए.एस.) के अधिकारी हैं, जो वर्तमान में प्रधान वित्तीय सलाहकार, वायुसेना मुख्यालय, नई दिल्ली में कार्यरत हैं । दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री हासिल कर सिविल सर्विस में आए। पठन-पाठन जारी रखते हुए एम.बी.ए. (एच.आर.डी. ) की डिग्री भी हासिल की। सरकारी काम-काज की व्यस्तता के बावजूद थोड़ा समय साहित्य सृजन के लिए निकालते रहे | उनकी कविताएँ व कहानियाँ विभिन्न विभागीय पत्रिकाओं में स्थान पाती रहीं । 'तीन पैरोंवाला' काव्य-संग्रह उनकी पहली पुस्तक है। एक कहानी-संग्रह भी शीघ्र प्रकाश्य