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भारत के गौरवमय इतिहास पर दृष्टि डालें तो हर पन्ने पर अनेक स्वतंत्रता सेनानियों और वीर योद्धाओं के विषय में पढ़ने एवं जानने का अवसर मिलेगा। बलिदान एवं संकल्प की इसी परंपरा को निभा रहे हैं हमारे बहादुर सैनिक, जिनकी पैनी दृष्टि और युद्ध कौशल से शत्रु सदैव परास्त होता आया है।
जीवन की आपाधापी और अपने-अपने घेरों में सिमटे हम लोग उनके विराट् व्यक्तित्व और साहस भरे वृत्तांतों को भले ही न देख पाएँ पर शशि पाधा से वे छूटते नहीं हैं। असल में ये नायक और उनका नायकत्व तो शशि के जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। शशि जो देखती हैं, महसूसती हैं, वह केवल रचनाकार के वश की बात नहीं है, यह तभी संभव है जब उन अहसासों को पहचानने वाला संवेदनशील हृदय भी रचनाकार के पास हो।
न पहले कभी ऐसी सत्यकथाओं को संगृहीत किया गया और न ही कभी अलग से इन्हें पढ़ने का कोई अवसर मिल पाया। इन वीर कथाओं को पढ़ते हुए मन किन भावों में डूब-उतरा रहा है, यह तभी समझा जा सकता है जब इस संग्रह के आदर्श महानायकों की गाथा आप तक पहुँचेगी। हम और हमारी आनेवाली पीढि़याँ इन नायकों के साहस भरे कौशल से प्रेरणा ले सकती हैं।
नमन उन ऊँचाइयों को, जिन्हें इन निडर युवकों ने अपना लक्ष्य बनाया। नमन उन सफलताओं को जिन्हें उन्होंने अपनी बहादुरी से पूरा किया। और बहुत-बहुत बधाई मेरी मित्र और संवेदनशील रचनाकार शशि पाधा को, जिनकी कलम इन गाथाओं को हम सबके लिए समेट लाई। इस अनजाने संसार से हिंदी साहित्य का परिचय करवाने के लिए उन्हें साधुवाद।
—पूर्णिमा बर्मन
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अनुक्रम
आमुख —Pgs. 7
1. एक अंतहीन प्रेम कथा —Pgs. 11
2. अपनी आत्मा का कप्तान —Pgs. 30
3. निर्भीक योद्धा —Pgs. 42
4. मन के जीते जीत —Pgs. 58
5. मिट्टी का मोह —Pgs. 68
6. स्कर्दू किले की घेराबंदी —Pgs. 74
7. उद्यम से अधिकार तक बढ़ते कदम —Pgs. 84
8. वीर स्थली का सिंह नाद —Pgs. 98
9. अनाम सैनिक —Pgs. 104
10. युद्धपोत खैबर —Pgs. 108
11. प्रधानमंत्री का प्रेरणा संदेश —Pgs. 116
12. मरुथल का नंदन वन —Pgs. 124
13. डाकिया डाक लाया —Pgs. 131
14. कदम मिलाकर चलना होगा —Pgs. 137
15. युद्ध एवं मानवीय संवेदना —Pgs. 145
जम्मू में जनमी शशि पाधा का बचपन साहित्य एवं संगीत के मिले-जुले वातावरण में व्यतीत हुआ। इन्होंने जम्मू-कश्मीर विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिंदी), एम.ए. (संस्कृत) तथा बी.एड. की शिक्षा ग्रहण की। वर्ष 1968 में इन्हें जम्मू विश्वविद्यालय से ‘ऑल राउंड बेस्ट वीमेन ग्रेजुएट’ के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1967 में यह सितार वादन प्रतियोगिता में राज्य के प्रथम पुरस्कार से सम्मानित हुईं।
यू.एस.ए. आने के बाद इन्होंने नॉर्थ केरोलिना राज्य के चैपल हिल विश्व-विद्यालय में हिंदी भाषा का अध्यापन कार्य किया। शशिजी के तीन काव्य-संग्रह ‘पहली किरण’, ‘मानस मंथन’ तथा ‘अनंत की ओर’ प्रकाशित हो चुके हैं। वर्ष 2015 में इन्हें काव्य-संग्रह ‘अनंत की ओर’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कविता के साथ-साथ यह साहित्य की अन्य विधाओं में भी लिखती हैं। इनकी रचनाएँ देश एवं विदेश की मुख्य पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। इनके सहयोगी संकलन हैं—कविता अनवरत, लघुकथा अनवरत, पीर भरा दरिया (माहिया संग्रह), अलसाई चाँदनी (सेदोका संग्रह) एवं यादों के पाखी (हाइकु संग्रह)।
संप्रति वे अपने परिवार सहित अमेरिका के वर्जीनिया राज्य में रहते हुए साहित्य-सेवा में संलग्न हैं।