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Nirmal Verma Ki Lokpriya Kahaniyan   

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Author Nirmal Verma
Features
  • ISBN : 9789351862994
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Nirmal Verma
  • 9789351862994
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2015
  • 176
  • Soft Cover
  • 200 Grams

Description

निर्मल वर्मा आधुनिक हिंदी कहानी के उन बिरले कथाकारों में से हैं, जिनकी प्रायः हर रचना कालजयी व लोकप्रिय रहती आई है। उनकी प्रसिद्ध एवं अतिप्रसिद्ध कहानियों में से केवल कुछ को इस संकलन के लिए रख पाना एक चुनौती थी और इसे अंजाम दिया लेखक-पत्नी एवं स्वयं लेखिका गगन गिल ने।
निर्मल वर्मा को युवा पाठकों का भरपूर प्रेम मिला है और प्रौढ़ पाठकों का भी। वे आधुनिक भारत के उन थोड़े से लेखकों में हैं, जिन्हें अंग्रेजीदाँ लोगों ने भी उसी चाव से पढ़ा, जितना कस्बाई पाठकों ने। दार्शनिकों, साधकों और रंगकर्मियों ने उतना ही, जितना रेस्तराँ के बैरों, पुलिस-कर्मियों और कबाड़ीवालों ने। निश्चित ही कुछ आत्म-बिंब उन सब पाठकों को इस लेखन में मिलते होंगे। यह संग्रह उन्हीं भिन्न छवियों को प्रस्तुत करने की चेष्टा है।
अकेलेपन और अलगाव से रँगे 
इस संसार में कई पात्र इन कहानियों में मिलते हैं—ज्वरग्रस्त बच्चे, नाराज बूढ़े, बेरोजगार नौजवान, एकालाप करती स्त्रियाँ और पुरुष। जैसे वे सब किसी संधिस्थल पर रह रहे हों—न भीतर, न बाहर—किसी दहलीज पर।
आशा है, यह पुस्तक सुधी पाठकों की साहित्यिक प्यास जगाएगी और बुझाएगी भी।

The Author

Nirmal Verma

निर्मल वर्मा (1929-2005) भारतीय मनीषा की उस उज्ज्वल परंपरा के प्रतीक-पुरुष हैं, जिनके जीवन में कर्म, चितंन और आस्था के बीच कोई फाँक नहीं रह जाती। कला का मर्म जीवन का सत्य बन जाता है और आस्था की चुनौती जीवन की कसौटी। ऐसा मनीषी अपने होने की कीमत देता भी है और माँगता भी। अपने जीवनकाल में गलत समझे जाना उसकी नियति है और उससे बेदाग उबर आना उसका पुरस्कार। निर्मल वर्मा के हिस्से में भी ये दोनों बखूब आए।
स्वतंत्र भारत की आरंभिक आधी से अधिक सदी निर्मल वर्मा की लेखकीय उपस्थिति से गरिमांकित रही। अपने लेखन में उन्होंने न केवल मनुष्य के दूसरे मनुष्यों के साथ संबंधों की चीर-फाड़ की, वरन् उसकी सामाजिक, राजनैतिक भूमिका क्या हो, तेजी से बदलते जाते हमारे आधुनिक समय में एक प्राचीन संस्कृति के वाहक के रूप में उसके आदर्शों की पीठिका क्या हो, इन सब प्रश्नों का भी सामना किया।
अपने जीवनकाल में निर्मल वर्मा साहित्य के लगभग सभी श्रेष्ठ सम्मानों से समादृत हुए, जिनमें साहित्य अकादेमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादेमी महत्तर सदस्यता उल्लेखनीय हैं। भारत के राष्ट्रपति द्वारा तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मभूषण’ उन्हें सन् 2002 में दिया गया। अक्तूबर 2005 में निधन के समय निर्मल वर्मा भारत सरकार द्वारा औपचारिक रूप से नोबल पुरस्कार के लिए नामित थे।

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