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नोट वोट है। वोट नोट है। नोट ब्रह्मा है। नोट शिव है। नोट विष्णु है। नोट सर्वत्र है। नोट सर्वज्ञ है। नोट ऊपर है, टेबल के नीचे है, फाइल के अंदर है, बाथरूम में है। नोट-ही-नोट हैं।
नोट सूर्य है, चंद्रमा है, सितारा है और पृथ्वी है। नोट लक्ष्मी है। नोट सरस्वती है। नोट सोना है। नोट चाँदी है। नोट नर है, अत: मादा को प्रिय है। नोट दिवाली है। नोट होली है। नोट रोली-मोली है।
नोट सतत मूल्य है। नोट धर्म है। नोट राजनीति है। नोट थोक है। नोट खुदरा है। नोट अधिकारी है, कर्मचारी है, गोल है, अत: गोलमाल करता है। नोट है तो मुँह खुल जाता है, मुट्ठी दब जाती है, फाइल चल जाती है। नोट फिसलता है, चमकता है, दमकता है, छलकता है, जाम की तरह खनकता है। जो नोट का सम्मान नहीं करता, वह मूर्ख है, अज्ञानी है, कर्म-फूटा है। नोटभक्षी नरभक्षी से ज्यादा खतरनाक है।
नोट कहाँ नहीं है! फाइव स्टार में है, ढाबे और थड़ी में है, चाय की प्याली में है, पान पत्ते में है, मटके और सट्टे में है, बैंक में है, लॉकर में है। यह सगुण साकार है वैसे निराकार है। अत: नोटम् नमामि।
—इसी पुस्तक से
यशवंत कोठारी के व्यंग्य आज की भौतिकवादी मानसिकता पर जमकर प्रहार करते हैं और आत्मचिंतन करने पर मजबूर करते हैं कि आखिर यह प्रवृत्ति हमें कहाँ ले जाएगी!
जन्म : 3 मई, 1950, नाथद्वारा, राजस्थान में।
शिक्षा : एम.एस-सी., रसायन विज्ञान राजस्थान विश्वविद्यालय (प्रथम श्रेणी), 1971 जी.आर.ई., टोफेल 1976, आयुर्वेद-रत्न।
प्रकाशन : लगभग 1000 लेख, निबंध, कहानियाँ, आवरण कथाएँ विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। 2व्यंग्य-संकलन, 5 पुस्तकें आयुर्वेद एवं चिकित्सा पर, 12 पुस्तकें बाल साहित्य पर। इसके अलावा एकांकी, स्वास्थ्य, जीवनी, उपन्यास, विज्ञान, पत्रकारिता आदि पर विपुल साहित्य प्रकाशित। पुरस्कार-सम्मान : राज्यसभा की कमेटी ‘पेपर्स लेड ऑन द टेबल ऑफ राज्यसभा’ द्वारा प्रशंसा-पत्र, राजस्थान साहित्य अकादमी का ‘कन्हैयालाल सहल पुरस्कार’, ‘साक्षरता पुरस्कार 1996’, ‘प्रेमचंद पुरस्कार’, ‘दलित साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘लक्ष्मी नारायण दुबे पुरस्कार’ आदि। बीस से अधिक पी-एच.डी./डी.लिट. शोध प्रबंधों में विवरण, पुस्तकों की समीक्षा आदि।
संप्रति : राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर में रसायन विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर एवं जर्नल ऑफ आयुर्वेद तथा आयुर्वेद बुलेटिन के प्रबंध संपादक।