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“मेरा असली नाम है चौधरी धरमचंद।”
“असली नाम! क्या मतलब?”
“वैसे तो मेरा, जो है सो, हर मुकदमे में नया नाम होता है, पर असली नाम धरमचंद है।”
“चौधरी धरमचंद, मुझे एक झूठी गवाही दिलवानी है।”
“झूठी? तो कोई और घर देखिए। मैं तो हमेशा सच्ची गवाही देता हूँ। चाहे मौके पे रहूँ या न रहूँ, पर गवाही सच्ची देता हूँ। भगवान् झूठ न बुलवाए, आज तक सैकड़ों गवाहियाँ दी हैं, कोई भी झूठी साबित नहीं हुई।”
—इसी संकलन में पढ़ें
आँखों पर काली पट्टी बाँधे,
हाथों में तराजू लिये खड़ी
न्यायदेवी की अंधी तलवार के शिकार
आम आदमी की व्यथा-कथा को,
नाटकीय और मनोरंजक परिदर्शन में कहते
न्याय-अन्याय के एकांकी
पेशेवर गवाहों और निर्जीव प्रमाणों के सहारे
न्याय का नित नया नाटक रचनेवाली
आधुनिक विदेशी न्याय-प्रणाली का
कच्चा चिट्ठा पेश करते हैं
न्याय-अन्याय के एकांकी
जन्म : सन् 1944, संभल ( उप्र.) ।
डॉ. अग्रवाल की पहली पुस्तक सन् 1964 में प्रकाशित हुई । तब से अनवरत साहित्य- साधना में रत आपके द्वारा लिखित एवं संपादित एक सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपने साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में लेखन-कार्य किया है । हिंदी गजल में आपकी सूक्ष्म और धारदार सोच को गंभीरता के साथ स्वीकार किया गया है । कहानी, एकांकी, व्यंग्य, ललित निबंध, कोश और बाल साहित्य के लेखन में संलग्न डॉ. अग्रवाल वर्तमान में वर्धमान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजनौर में हिंदी विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष हैं । हिंदी शोध तथा संदर्भ साहित्य की दृष्टि से प्रकाशित उनके विशिष्ट ग्रंथों-' शोध संदर्भ ' ' सूर साहित्य संदर्भ ', ' हिंदी साहित्यकार संदर्भ कोश '-को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है ।
पुरस्कार-सम्मान : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा व्यंग्य कृति ' बाबू झोलानाथ ' (1998) तथा ' राजनीति में गिरगिटवाद ' (2002) पुरस्कृत, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली द्वारा ' मानवाधिकार : दशा और दिशा ' ( 1999) पर प्रथम पुरस्कार, ' आओ अतीत में चलें ' पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ का ' सूर पुरस्कार ' एवं डॉ. रतनलाल शर्मा स्मृति ट्रस्ट द्वारा प्रथम पुरस्कार । अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन, उज्जैन द्वारा सहस्राब्दी सम्मान ( 2000); अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानोपाधियाँ प्रदत्त ।