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Author Indira Mohan
Features
  • ISBN : 9788193397442
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
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  • Kindle Store

More Information

  • Indira Mohan
  • 9788193397442
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2017
  • 128
  • Hard Cover

Description

ओंकार हमारा सत्य है, हमारा आंतरिक अस्तित्व है, जिसकी ध्वनि-तरंग पृथ्वी से लेकर आकाश तक दसों दिशाओं में प्रतिध्वनित हो रही है। यह गूँज आनंद स्वरूप शिवत्व का प्रतीक है, परम सत्ता का ऐश्वय है, जीवन विवेक है, जिसे अपने आचार-विचार में अभिव्यक्त करना है। जैसे घाट की सीढि़यों के सहारे हम नदी में उतरते हैं, उसी प्रकार अर्थपूर्वक ॐ के आश्रय द्वारा हम परमात्मा की आनंदमय उपस्थिति का अनुभव कर सकते हैं।
ॐ की ध्वनि सर्वाधिक पवित्र एवं दिव्य है। इससे और अधिक सुंदर, अधिक सार्थक एवं आह्लादकारी कुछ भी नहीं है। ओंकार की सतत साधना पूरी सृष्टि से अपनी आत्मीयता उजागर कर जीवन का कायाकल्प कर सकती है। तब पता चलता है कि हम ही बादलों में हैं, चाँद-सितारों में हैं, खेत-खलिहानों में हैं। कल-कल बहते झरने नदी में समा गए हैं—अब हम बूँद नहीं, सागर हो गए हैं।
ओंकार के माहात्म्य और इसकी महत्ता को सरल-सुबोध भाषा में प्रस्तुत करती पठनीय पुस्तक, जिसके अध्ययन से आप स्वयं को आध्यात्मिक स्तर पर उन्नत हुआ पाएँगे।

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अनुक्रम

अवबोध — Pg.

पृष्ठभूमि — Pg. ११

१. सर्व-सार ओंकार — Pg. २१

२. विभिन्न उपनिषदों में ओंकार — Pg. २७

३. कठोपनिषद् — Pg. ३१

४. छांदोग्योपनिषद् — Pg. ३४

५. प्रश्नोपनिषद् — Pg. ३९

६. मुण्डकोपनिषद् — Pg. ४४

७. ब्रह्मबिंदु-उपनिषद् — Pg. ४९

८. अथर्व शिखोपनिषद् — Pg. ५३

९. श्रीमद्भगवद्गीता — Pg. ६१

१०. माण्डूय उपनिषद् — Pg. ६९

११. ॐ ही सब कुछ है — Pg. ७२

१२. आत्मा का प्रथम पाद — Pg. वैश्वानर — Pg. ७७

१३. आत्मा का द्वितीय पाद — Pg. तैजस — Pg. ८१

१४. आत्मा का तृतीय पाद — Pg. प्राज्ञ — Pg. ८४

१५. प्राज्ञ का सर्वकारणत्व — Pg. ८७

१६. तुरीय का स्वरूप — Pg. ९०

१७. अकार और विश्व का तादात्म्य — Pg. ९८

१८. उकार और तैजस का तादात्म्य — Pg. ९९

१९. मकार और प्राज्ञ का तादात्म्य — Pg. १००

२०. अमात्र और आत्मा का तादात्म्य — Pg. १०१

२१. ओंकार-साधना — Pg. १०६

२२. ओंकार-विज्ञान — Pg. ११३

२३. चेतना का विस्तार ओंकार — Pg. १२०

The Author

Indira Mohan

• भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जन्म। 
• आरंभ से ही आध्यात्मिकता के प्रति झुकाव एवं लगाव। 
• उच्च शिक्षा एम.ए. (समाजशास्त्र) तक। 
• लगभग तीन दशक से सकार कविता/गीत की साधना।
• गीत-संग्रह ‘पेड़ छनी परछाइयाँ’ (1994), ‘पीछे खड़ी सुहानी भोर’ (2001), ‘कहाँ है कैलास’ मुक्त छंद कविताओं का लोकप्रिय संग्रह (2005), गीत-संगह ‘धरती रहती नहीं उदास’ (2013) बहुचर्चित एवं प्रशंसित। ‘योगवसिष्ठ अनुशीलन’, ‘योगवसिष्ठ’ विशाल ग्रंथ का संक्षेपीकरण (2015)।
• शिवत्व की साधना को समर्पित, जहाँ भाव में भी आनंद है, अभाव में भी आनंद है। 
• प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं एवं ग्रंथों में वार्त्ता, निबंध, लेख आदि का निरंतर प्रकाशन-संकलन। सृजन के माध्यम से ऊर्ध्वमुखी चेतना को उद्घाटित करने का प्रयास। 
• आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से रचनाओं का प्रसारण। 
• श्री विश्वनाथ संन्यास आश्रम सहित अनेक सामाजिक, साहित्यिक संस्थाओं, यथा हिंदी भवन (दिल्ली), हिंदी साहित्य सम्मेलन (केंद्रस्थ संगठन), सेवा भारती आदि से विभिन्न रूप में संबद्ध।

 

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