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बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्री राम बक्षाणी की आत्मकथा पढ़कर अत्यंत आनंद का अनुभव होता है। निज-जीवन की कथा कहने का उनका ढंग अत्यंत निराला है। इसमें वह अनेक सिंधी परिवारों के इतिहास व भावनाओं का चित्रण करते हैं। बचपन के बेफिक्र दिनों से लेकर भारत के बँटवारे की भयावहता और विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करके सिंधी समुदाय की सफलताओं को समेटे उनकी गाथा पाठक की कल्पना को उद्दीप्त करती है। उनके अनुसार सफलता सिंधी समुदाय के लोगों का पर्याय बन चुकी है।
ऊँची उड़ान की ओर में एशिया के दो सर्वाधिक उन्नत देशों—दुबई और जापान की विशेष चर्चा है। दुबई में 43 वर्षों से रह रहे श्री बक्षाणी ने इन दोनों प्रगतिशील देशों के उत्थान के इतिहास को दर्ज किया है। इस प्रयास में उन्होंने सिंधी समाज की उद्यमशीलता व रोमांच की भावना की समतुल्यता भी स्थापित की है।
सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है कि श्री राम बक्षाणी एक पुत्र हैं, पति हैं, पिता हैं, और पितामह भी। उन्हें अपने जीवन से प्यार है, लेकिन वह जानते हैं कि अपने जीवन की यात्रा का अधिकांश भाग वह पूर्ण कर चुके हैं। अपनी उपलब्धियों का सिंहावलोकन करते हुए उनके दार्शनिक विचार वर्तमान को समृद्ध करते हैं और कल की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करते हैं। यही इस पुस्तक का सारतत्त्व है, जो पाठकों की कल्पना और कर्मठता को जाग्रत् करेगा।
श्री राम बक्सानी एक सफल व्यवसायी और स्नेही मित्र, दोनों हैं। उनका जीवन 40 से भी अधिक वर्ष पहले दुबई पहुँचने और सुनहरे भविष्य का सपना साकार करने की सफल कहानी है। वह पति हैं और पिता भी, एक सफल व्यवसायी हैं, सिंधी समाज के महत्त्वपूर्ण स्तंभ हैं, एक उद्यमी और सफल प्रवासी भारतीय हैं और अत्यंत मुखर किंतु सहयोग देने को तत्पर प्रवासी भी, जिसने संयुक्त अरब अमीरात के विकास व प्रगति में अतुलनीय योगदान दिया है।