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लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों की पीड़ा और उनके साथ हर पल हो रही एक-एक घटना दिल दहला देनेवाली है। रमजान मियाँ परिवार सहित दिल्ली से गाँव के लिए चल पड़ते हैं। उनकी सोलह साल की बेटी है सबिना, जो विक्की नाम के हिंदू लड़के से प्यार करती है और उसे छोड़कर नहीं जाना चाहती। विक्की भी सबिना से दूरी बरदाश्त नहीं कर पाता है और वह उसके पीछे-पीछे चल देता है।
इन प्रवासी मजदूरों के संग एक आर्चबिशप, एक मौलवी साहब और एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री की आत्मा सफर कर रही है। रास्ते में रमजान मियाँ की मृत्यु हो जाती है। प्रधानमंत्री रमजान मियाँ के शरीर में प्रवेश करते हैं और उनके परिवार को सही-सलामत उनके घर तक पहुँचाने की जिम्मेदारी उठाते हैं। तब उन्हें पहली बार गरीबी और लाचारी का एहसास होता है। आर्चबिशप, मौलवी साहब और प्रधानमंत्री—तीनों अफसोस करते हैं कि जब हमारे पास मौका व पावर थी, तब हमने ठीक से अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई।
प्रधानमंत्री सबिना और विक्की की शादी करवाकर एक पिता का फर्ज निभाना चाहते हैं, लेकिन सबिना के साथ रेप और मर्डर का हादसा उनको तोड़कर रख देता है। जिस देश में वह प्रधानमंत्री रहे, उसी देश में अपनी बेटी को नहीं बचा पाए...क्यों...? कैसे? अनगिनत सवाल हैं, जिसका जवाब आज हर उस व्यक्ति को देना होगा, जो पावर में है, जिसके पास कुछ करने का मौका है।
अन्यथा जीवित रहते या मरने के बाद हर किसी को अपने पापों का प्रायश्चित तो करना ही पड़़ेगा
संजय भारती फिल्म-मेकर हैं। वह कॉमर्शियल और सामाजिक विषयों, दोनों पर लिखते और फिल्में बनाते हैं। उनकी फिल्म ‘छोटे-उस्ताद—प्रिकॉशन इज बेटर दैन क्योर’ को नई दिल्ली फिल्म फेस्टिवल से अप्रीसिएशन अवॉर्ड मिला और यह फिल्म कई ओ.टी.टी. चैनल पर प्रदर्शित की गई है। उन्होंने विविध सामाजिक विषयों पर टेलीफिल्में बनाई हैं, जो दूरदर्शन और दूसरे नेशनल चैनलों पर प्रदर्शित हुई हैं। भारत सरकार के मंत्रालयों की डॉक्यूमेंट्री फिल्में और कॉरपोरेट वीडियो बनाने का दीर्घ अनुभव। अनेक म्यूजिकल स्टेज शो लिखे हैं। ‘पाप और प्रायश्चित’ उनका पहला उपन्यास है, जिसका दूसरा भाग भी जल्दी ही आपके समक्ष होगा।