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भारत में पिछले 50 वर्षों के दौरान जनजातीय जीवन के संबंध में
नृ-पुरातात्त्विक अध्ययन का महत्त्व बढ़ा है। नृ-पुरातत्त्व के अंतर्गत समकालीन सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवहारों तथा भौतिक संस्कृति के विभिन्न तत्त्वों का अध्ययन प्राप्त पुरातात्त्विक अवशेषों की विशेषताओं के आधार पर किया जाता है। इस पद्धति ने जनजातीय अध्ययन को बड़ा फलक प्रदान किया है। इसमें परिवर्तन तथा निरंतरता का विशेष महत्त्व है। पहाडि़या आदिम जनजाति पर पूर्व में किए गए शोध व लेखन की तुलना में यह पुस्तक कई मायनों में खास है। यह पहाडि़या जीवन पर शोध की दिशा में ठोस वैज्ञानिक आधारों पर
नृ-पुरातात्त्विक अध्ययन प्रस्तुत करती है।
लेखक डॉ. सुरेंद्र नाथ तिवारी ने इस पुस्तक में पहाडि़या जनजाति पर शोधपरक अध्ययन प्रस्तुत करते हुए इसकी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक स्थितियों का सांगोपांग वर्णन किया है। इसमें आदियुग के कई सूत्र छिपे हुए हैं, जो समाजशास्त्रियों, नीति-निर्माताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित आम पाठक के साथ-साथ इतिहासकारों व पुराविदों को भी रुचिकर लगेंगे।