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हमारी नियति कई आयामों में विचरने के बाद अपने सत्त्व पर वापसी करती है, क्योंकि अंततः जन्मस्थान और पैदायशी खंडकाल ही उसके निर्धारक हैं एवं जो पल हमारे जीवन को दिशा देते हैं, अधिकतर असाधारण न होकर सामान्य और व्यक्तिगत होते हैं।
इस जीवन-गाथा की क्रमबद्ध प्रस्तुति में एक अपवाद जरूर है—मस्कट (ओमान राज्य की राजधानी), जिसका जिक्र बार-बार किया गया है और जिसका मुख्य आकर्षण है, मेरे ज्येष्ठ पुत्र संजीव का वहाँ व्यवसाय संबंधित अस्थायी आवास। इसके अलावा संयोगवश ओमानी सुलतान का चाचा फाहर और मैं मेयो कॉलेज में स्कूली पढ़ाई के दौरान सहवर्ती शिक्षार्थी थे एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातक अध्ययन काल का एक घनिष्ठ मित्र यशपाल भारद्वाज मस्कट में इंडियन स्कूल का प्रधानाध्यापक था और मैंने उसके साथ कई अंतरंग लम्हे बिताए। एक हादसे के कारण मेरे दुर्घटनाग्रस्त होने पर यशपाल का संकटमोचक सिद्ध होना मस्कट के दौर का मुख्य बिंदु साबित हुआ।
संस्मरण में पाठक से निजी तौर पर संप्रेषण स्थापित करने के प्रयास में ‘संवाद’ और ‘चरित्र चित्रण’ का सहारा लिया है, क्योंकि ये दोनों तत्त्व मार्मिक संपर्क के सशक्त माध्यम हैं। चरित्र-चित्रण में सामान्य अथवा विशेष हस्तियों के सशक्त और दुर्बल पहलुओं को वर्णित करने का प्रयास किया गया है एवं घटनाओं में व्यक्तिगत और व्यवसाय संबंधी रोचक अथवा पेचीदे मामले उद्धृत किए गए हैं।
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अनुक्रम
प्रशस्ति — 7
आभार — 13
1. परिवार की स्थापना — 17
2. बायाँ कंधा चोटग्रस्त — 19
3. बैठक का दुरुपयोग — 22
4. मनसुक्खाजी का कहर — 37
5. अम्माँ की अदालत — 41
6. बरेठा के जंगल में शेर का शिकार? — 47
7. त्रिकोणीय सिद्धि — 51
8. टब्स-जूनियर हाउस मेट्रन — 57
9. मासूम अली खान टोंक — 62
10. वजीर खान — 65
11. मेयो से जुदाई का अजीबोगरीब घटनाचक्र — 69
12. मेयो वापसी — 76
13. बाबूजी की महल से अलग पारी — 78
14. सेंट स्टीफंस, दिल्ली — 101
15. विवाह संबंधी विघ्न और जद्दोजहद — 119
16. आरंभिक प्रशिक्षण — 124
17. दिल्ली-दो मील के पत्थरों का संगम — 129
18. सरकार के खर्चे पर राजस्थान दर्शन — 141
19. युद्ध श्रम-1965 — 151
20. बाड़मेर में दूसरी पारी — 159
21. अंतिम जिला-अजमेर — 187
22. क्षेत्रीय नियुक्तियों के समापन में प्रशस्ति — 192
23. मुख्यालय — 198
24. केंद्रीय अनुसंधान ब्यूरो — सी. बी. आई. 207
25. दिल्ली में असरदार आतंकी दस्तक — 220
26. अंततः घर वापसी — 235
27. मस्कट हादसे का खुलासा — 244
28. असियाते शेखर दंपत्ति — 253
हमारी नियति कई आयामों में विचरने के बाद अपने सत्त्व पर वापसी करती है, क्योंकि अंततः जन्मस्थान और पैदायशी खंडकाल ही उसके निर्धारक हैं एवं जो पल हमारे जीवन को दिशा देते हैं, अधिकतर असाधारण न होकर सामान्य और व्यक्तिगत होते हैं।
इस जीवन-गाथा की क्रमबद्ध प्रस्तुति में एक अपवाद जरूर है—मस्कट (ओमान राज्य की राजधानी), जिसका जिक्र बार-बार किया गया है और जिसका मुख्य आकर्षण है, मेरे ज्येष्ठ पुत्र संजीव का वहाँ व्यवसाय संबंधित अस्थायी आवास। इसके अलावा संयोगवश ओमानी सुलतान का चाचा फाहर और मैं मेयो कॉलेज में स्कूली पढ़ाई के दौरान सहवर्ती शिक्षार्थी थे एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातक अध्ययन काल का एक घनिष्ठ मित्र यशपाल भारद्वाज मस्कट में इंडियन स्कूल का प्रधानाध्यापक था और मैंने उसके साथ कई अंतरंग लम्हे बिताए। एक हादसे के कारण मेरे दुर्घटनाग्रस्त होने पर यशपाल का संकटमोचक सिद्ध होना मस्कट के दौर का मुख्य बिंदु साबित हुआ।
संस्मरण में पाठक से निजी तौर पर संप्रेषण स्थापित करने के प्रयास में ‘संवाद’ और ‘चरित्र चित्रण’ का सहारा लिया है, क्योंकि ये दोनों तत्त्व मार्मिक संपर्क के सशक्त माध्यम हैं। चरित्र-चित्रण में सामान्य अथवा विशेष हस्तियों के सशक्त और दुर्बल पहलुओं को वर्णित करने का प्रयास किया गया है एवं घटनाओं में व्यक्तिगत और व्यवसाय संबंधी रोचक अथवा पेचीदे मामले उद्धृत किए गए हैं।