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नुक्कड़ नाटकों की जरूरत पैदा होने के पीछे कई कारण रहे हैं। सबसे पहला और तात्कालिक कारण था—देश में शोषक वर्गों के दमन का तेज होना। सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में भी और सांस्कृतिक क्षेत्र में भी। आजादी के बाद अंग्रेजी शासन का अंत होने से देश आजाद नहीं हुआ। देश की जनता अब भी सामंतों और पूँजीपतियों के शासन-तले पिस रही है। इस सच्चाई के सामने आते ही जनता के आंदोलन में तेजी आई। दूसरी ओर शोषक वर्गों ने इन आंदोलनों को कुचलने या भटकाने के लिए कदम उठाने शुरू किए।
इस दमन का विरोध करने का सबसे सशक्त माध्यम बन गए हैं नुक्कड़ नाटक, जो बरबस दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इस पुस्तक में इन सब बुराइयों-असमानताओं के प्रति जागरूकता लाने और आम जन को सचेत करनेवाले पाँच नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किए गए हैं।समाज की सुप्त चेतना पर प्रहार कर उसे सचेत करने का सफल प्रयास हैं ये नुक्कड़ नाटक।
जन्म : पटना में।
शिक्षा : भागलपुर विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक।
कृतित्व : एक दर्जन कहानियाँ और दो दर्जन नुक्कड़ नाटक, जिनकी हजारों सफल प्रस्तुतियाँ हो चुकी हैं। उनमें कुछ चर्चित नुक्कड़ नाटक हैं—‘जनतंत्र के मुर्गे’, ‘हमें बोलने दो’, ‘जिंदाबाद-मुर्दाबाद’, ‘रँगा सियार’, ‘भ्रष्टाचार का अचार’। ‘झोंपड़पट्टी’, ‘आखिरी सलाम’, ‘अंतिम युद्ध’, ‘गांधी ने कहा था’, ‘घर वापसी’, ‘मार पराजय’, ‘हवन कुंड’, ‘कह रैदास खलास चमारा’ और ‘असमाप्त संवाद’ (पूर्णकालिक नाटक)। ‘हमें बोलने दो’, ‘जनतंत्र के मुर्गे’, ‘कोरस का संवाद’ और ‘जमीन हमारी है’ पाँच नुक्कड़ नाटक, भ्रष्टाचार का अचार (नुक्कड़ नाटक-संग्रह) तथा एकल नाटक संग्रह ‘शताब्दी की परछाइयाँ’ प्रकाशित।
सम्मान : ‘नई धारा रचना सम्मान’, साहित्य कला परिषद्, दिल्ली की ओर से नाट्य-लेखन के लिए ‘मोहन राकेश सम्मान’।
संप्रति : उ.प्र. पावर कॉरपोरेशन में अधिशासी अभियंता।